स्वर्गीय लालबहादुर शास्त्री का जन्म 1904 में मुगलसराय, उत्तर प्रदेश में लाल बहादुर श्रीवास्तव के रुप में हुआ था। उनके पिता शारदा प्रसाद एक गरीब शिक्षक थे, जो बाद में राजस्व कार्यालय में लिपिक (क्लर्क) बने।
भारत की स्वतंत्रता के पश्चात शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रुप में नियुक्त किया गया। वो गोविंद बल्लभ पंत के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में प्रहरी एवं यातायात मंत्री बने। यातायात मंत्री के समय में उन्होनें प्रथम बार किसी महिला को संवाहक (कंडक्टर) के पद में नियुक्त किया। प्रहरी विभाग के मंत्री होने के बाद उन्होने भीड़ को नियंत्रण में रखने के लिए लाठी के जगह पानी की बौछार का प्रयोग प्रारंभ कराया। 1951 में, जवाहर लाल नेहरु के नेतृत्व मे वह अखिल भारत काँग्रेस कमेटी के महासचिव नियुक्त किये गये। उन्होने 1952, 1957 व 1962 के चुनावों मे कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जिताने के लिए बहुत परिश्रम किया।
जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को देहावसान हो जाने के बाद, शास्त्री जी ने 9 जुन 1964 को प्रधान मंत्री का पद भार ग्रहण किया।
उनकी शिक्षा हरिशचंद्र उच्च विद्यालय और काशी विद्यापीठ में हुई थी। यहीं से उन्हें शास्त्री की उपाधि भी मिली जो उनके नाम के साथ जुड़ी रही।
अपने पिता मिर्जापुर के श्री शारदा प्रसाद और अपनी माता श्रीमती रामदुलारी देवी के तीन पुत्रो में से वे दूसरे थे। शास्त्रीजी की दो बहनें भी थीं। शास्त्रीजी के शैशव मे ही उनके पिता का निधन हो गया। 1928 में उनका विवाह श्री गणेशप्रसाद की पुत्री ललितादेवी से हुआ और उनके छः संतान हुई।
स्नातक की शिक्षा समाप्त करने के पश्चात वो भारत सेवक संघ से जुड़ गये और देशसेवा का व्रत लेते हुये यहीं से अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। शास्त्रीजी विशुद्ध गाँधीवादी थे जो सारा जीवन सादगी से रहे और गरीबों की सेवा में अपनी पूरी जिंदगी को समर्पित किया। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में उनकी भागीदारी रही, और जेलों मे रहना पड़ा जिसमें 1921 का असहयोग आंदोलन और 1941 का सत्याग्रह आंदोलन सबसे प्रमुख है। उनके राजनैतिक दिग्दर्शकों में से श्री पुरुषोत्तमदास टंडन, पंडित गोविंदबल्लभ पंत, जवाहरलाल नेहरू इत्यादि प्रमुख हैं। 1929 में इलाहाबाद आने के बाद उन्होंने श्री टंडनजी के साथ भारत सेवक संघ के इलाहाबाद इकाई के सचिव के रूप में काम किया। यहीं उनकी नजदीकी नेहरू से भी बढी। इसके बाद से उनका कद निरंतर बढता गया जिसकी परिणति नेहरू मंत्रिमंडल मे गृहमंत्री के तौर पर उनका शामिल होना था। इस पद पर वे 1951 तक बने रहे।
शास्त्रीजी को उनकी सादगी, देशभक्ति और इमानदारी के लिये पूरा भारत श्रद्धापूर्वक याद करता है। उन्हे वर्ष 1966 मे भारत रत्न से सम्मनित किया गया। लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु 11 जनवरी, 1966 ताशकंद, उजबेकिस्तान, तत्कालीन सोवियत सघं में हुई थी।
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