रविवार, अगस्त 15, 2010

आजादी के जश्न से इसलिए दूर रहे गांधीजी

 ये बात अपने-आप में किसी अजूबे से कम नहीं है कि देश को आजादी दिलवाने के लिए सबसे लंबी लड़ाई लड़ने वाले और हमें आजादी दिलवाने वाले महात्मा गांधी ने खुद को आजादी के जश्न से दूर रखा था। 15 अगस्त 1947 के दिन गांधीजी कलकत्ता में थे। वे यहां हिंदू-मुस्लिम दंगों को शांत करवाने के लिए आए थे। उस दिन गांधीजी ने उपवास रखा और सारा दिन पूजा-पाठ में बिताया। सांप्रदायिक दंगों का उनके दिल-दिमाग पर बहुत बुरा असर हुआ था। इस दौरान की उनकी यात्राओं के बारे में बहुत से इतिहासकारों ने लिखा है। इतिहासकार ज्यूडिथ ब्राउन लिखते हैं कि इतनी उम्र और कमजोरी के बावजूद गांधीजी यात्राएं करते रहे और दंगे की आग में जल रहे लोगों को भाषण देकर समझाते रहे। बंगाल के कुछ इलाकों में 1946 से ही हिंदू-मुस्लिम दंगे फैल गए थे। गांधीजी उन जिलों में जाकर लोगों को शांत करते रहे।

ऐसे ही पत्रकार होरेस एलेक्जेंडर ने भी इस दौरान के एक किस्से का वर्णन किया है। होरेस लिखते हैं कि एक बार गांधीजी यहां के एक गांव में प्रार्थना कर रहे थे। इस दौरान एक मुस्लिम ने आकर उनका गला पकड़ लिया और गांधीजी नीचे गिर गए। गिरने के बाद गांधीजी ने कुरान की कुछ आयतें पढ़ना शुरू कर दीं। कुरान की आयत सुनकर मुस्लिम शख्स काफी शर्मिदा हुआ। उसने माफी मांगते हुए कहा मैं आपकी हिफाजत करने के लिए हमेशा तैयार रहूंगा। आप मुझे कोई भी काम दीजिए, आप बताइए मैं आपके लिए क्या करूं? गांधीजी ने कहा कि तुम गांव लौटकर किसी से मत कहना की तुमने मेरे साथ क्या सलूक करने की कोशिश की है, वरना दंगे भड़क जाएंगे। तुम मुझे भूल जाओ और खुद को माफ कर लो।

2 टिप्‍पणियां:

शेरघाटी ने कहा…

मार्मिक प्रसंग !

क्या बात है ! बहुत खूब !

अंग्रेजों से हासिल मुक्ति-पर्व मुबारक हो !
समय हो तो अवश्य पढ़ें :

आज शहीदों ने तुमको अहले वतन ललकारा : अज़ीमउल्लाह ख़ान जिन्होंने पहला झंडा गीत लिखा http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_14.html

शहरोज़

Udan Tashtari ने कहा…

यह प्रसंग पढ़कर अच्छा लगा.

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.

सादर

समीर लाल