शनिवार, जनवरी 01, 2011

बुद्धिमान खरगोश, मूर्ख हाथी

प्राचीन समय की बात है एक जंगल में ठण्डे एवं स्वच्छ जल का एक तालाब था। उस तालाब के आस पास कुछ खरगोश भी रहते थे। जब भी ख़रगोश प्यासे होते उसी तालाब से प्यास बुझाते थे। यहां तक कि एक दिन हाथियों का एक झुंड उस जंगल में आ पहुंचा। हाथी भी हर दिन उसी तालाब का पानी पीने लगे। खरगोशों को हाथियों का आना अच्छा नहीं लगा क्योंकि अब वे अपनी इच्छानुसार जब चाहें पानी नहीं पी सकते थे। खरगोश जब भी तालाब के पास जाते उन्हें कुछ हाथी उसके पास अवश्य मिलते थे इसलिए खरगोश तालाब के पास जाने से हिचकिचाते थे। इसके अतिरिक्त हाथी उस तालाब को गंदा भी करते थे।



एक दिन सब खरगोशों ने इस स्थिति से छुटकारा पाने के लिए आपस में बातचीत की। एक वृद्ध और बुद्धिमान खरगोश ने जो अपनी बुद्धिमानी के लिए खरगोशों के बीच विख्यात था, कहाः मैंने समाधान ढूंढ लिया है। शीघ्र ही ऐसा कदम उठाउंगा कि हाथी अब तालाब के निकट भी नहीं फटकेंगे। अन्य खरगोशों ने आश्चर्य से पूछाः वह कैसे? तुम जैसे वृद्ध खरगोश से क्या संभव है? क्या तुम उन शक्तिशाली हाथियों से लड़ सकते हो और उन्हें तालाब से दूर कर सकते हो?

वृद्ध खरगोश ने कहाः मेरे पास एक युक्ति है। शीघ्र ही तुम सब को मेरी युक्ति पता चल जाएगी। मैं आज रात पहाड़ पर जाउंगा और हाथियों से बातचीत करूंगा। मुझे आशा है कि हाथी मेरी बातों को मान लेंगे और यहां से चले जाएंगे। अन्य खरगोशों को जो वृद्ध खरगोश की बुद्धिमत्ता से अवगत थे, इस बात पर विश्वास हो गया कि निरर्थक बातें न करने वाले वृद्ध खरगोश ने अवश्य कोई युक्ति ढूंढ निकाली है और शीघ्र वह हम सब को इस संकट से निकाल लेगा। उस रात चैदहवीं का चांद अपनी चमक बिखेर रहा था। वह बुद्धिमान खरगोश पहाड़ पर गया और ऊंची आवाज में गुहार लगाने लगा। हाथी खरगोश की गुहार को ध्यान से सुनने लगे। वृद्ध ख़रगोश ने कहाः हे हाथियो! सुनो! जान लो कि मैं चंद्रमा का दूत हूं और उसकी ओर से तुमसे बात कर रहा हूं। चंद्रमा ने आदेश दिया है कि किसी भी हाथी को तालाब के निकट होने की भी अनुमति नहीं है। क्योंकि तालाब पर खरगोशों का अधिकार है। चंद्रमा भी खरगोशों के साथ है। मैं उसका दूत हूं और उसका संदेश तुम लोगों तक पहुंचा रहा हूं। तालाब पर चंद्रमा और खरगोश का अधिकार है। आज के बाद तालाब के निकट भी न जाना। हे हाथियो! ध्यान से सुन लो यदि तालाब के निकट हुए तो चंद्रमा तुम्हें अंधा कर देगा। मेरी बात को बकवास न समझो मेरी बात की वास्तविकता को समझने के लिए आज रात पानी पीने के लिए तालाब के पास जाओ जब तुम तालाब में देखोगे तो तुम्हें पता चल जाएगा कि चंद्रमा कितना क्रोधित है। फिर खरगोश ने हाथियों के सरदार को संबोधित करते हुए कहाः मैं जो कह रहा हूँ वह तुम्हारे हित में है। बेहतर होगा कि अपने साथियों को इकटठा करो और यहाँ से निकल जाओ। यदि अपने झुंड के साथ यहाँ से नहीं गए तो स्वंय भुगतोगे तब हमसे यह न कहना कि पहले से तुम्हें क्यों नहीं सूचित किया।

वृद्ध खरगोश अपनी बात कहने के पश्चात, पहाड़ से उतरा और अपने साथियों के पास पहुंचा और उनसे कहाः अब बैठ कर अपनी युक्ति का परिणाम देखते हैं। प्रार्थना करो कि हाथियों ने मेरी बात पर विश्वास कर लिया हो। हाथी पानी पीने के लिए सदैव दिन में तालाब के पास जाते थे और उस समय तक कोई भी हाथी पानी पीने के लिए रात में नहीं गया था। न केवल हाथी बल्कि खरगोश भी रात में पानी पीने के लिए सोते के निकट नहीं जाते थे। हाथियों ने वृद्ध खरगोश की बात पर तनिक विचार किया। एक हाथी ने कहाः यह वृद्ध व मूर्ख खरगोश बकवास कर रहा है। दूसरे हाथी ने कहाः कैसे पता कि सही नहीं कहा होगा? हाथियों के सरदार ने कहाः संभव है चंद्रमा ने ही ऐसा कहा हो। चलो आज रात तालाब के निकट चल कर देखते हैं कि खरगोश की बात कितनी सही है? सभी हाथी तालाब की ओर चल पड़े। हाथियों के सरदारों ने कहाः इस बात की वास्तविकता को परखने के लिए मैं स्वंय तालाब के पास जा रहा हूँ तुम सब यहीं रूको। मैं आकर बताउंगा कि खरगोश की बात सही है या गलत।

हाथियों का सरदार सोते के निकट पहुंचा। अचानक उसकी दृष्टि तालाब के पानी पर पड़ी। उसने आश्चर्य से देखा कि चांद का चित्र पानी पर उभरा है। हाथियों के सरदार ने अपने मन में कहाः यहाँ तक तो खरगोश की बात सही थी। अब तालाब का पानी पीकर देखूँ ताकि पता चल जाए कि खरगोश की बात सही है या गलत। हाथी के सरदार ने अपना सूढ़ पानी में डाला। जैसे ही उसका सूढ़ पानी में गया, पानी में लहरें उठीं और पानी के ऊपर चांद के दिखाई देने वाले चित्र में कंपन्न दिखाई दिया। हाथी ने इससे समझा कि चंद्रमा क्रोधित हो गया है और इसी क्रोध से वह कांप रहा है। स्वंय से कहने लगाः खरगोश सत्य कहता है। यहाँ से निकल जाने में ही भलाई है अन्यथा संभव है कि चंद्रमा हमें अंधा कर दे। अब मेरी आंखे भी कमजोर हो चुकी हैं और चंद्रमा को धुंधला और कांपते हुए देख रहा हूँ।

भोला हाथी यह नहीं समझ सका कि सूढ़ पानी में डालने से लहरें पैदा हुई जिसके कारण चंद्रमा में कंपन्न दिखाई दे रहा है। वह यह नहीं समझ सका कि पैर को पानी में डालने से, कीचड़ उभरा है और उसके कारण पानी गदला हो गया है इसलिए पानी में चंद्रमा का चित्र धुंधला दिखाई दे रहा है। हाथियों का सरदार अपने मित्रों की ओर वापस लौट गया और उनसे कहने लगाः खरगोश की बात सही थी। बेहतर है आज की रात अभी यहाँ से किसी दूसरे तालाब की ओर चल दें।

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