शुक्रवार, मार्च 28, 2014

साड़ी बन जाएगी ऐसी मुसीबत, मोदी ने सोचा न था!

सियासत से बड़ा सिरदर्द बनी साड़ी

भाजपा के पीएम पद के दावेदार नरेंद्र मोदी इन दिनों अजीबोगरीब मुश्किल में हैं। मामला सियासत का है और हर चीज पर निगाह डाली जा रही है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने नए शहर में 'साड़ी' को लेकर कठोर फैसला करने की जरूरत होगी।

सूरती सिल्क या बनारसी बुनकरी, फैसला मुश्किल है। दरअसल, वाराणसी का बुनकर समुदाय अपनी तमाम दिक्कतों के लिए गुजरात की टेक्सटाइल सिटी सूरत को जिम्मेदार ठहराता है। और अब वो वोट के बदले समाधान चाहते हैं।

इसलिए जब मोदी बनारस पहुंचेंगे, तो मदनपुरा की गलियां उनसे सबसे पहले यही सवाल करेंगी, "क्या आप वाराणसी के बुनकरों की मदद करेंगे, ताकि वो उनके गृहराज्य के कपड़ा उद्योग से मुकाबला कर सकें।"

सूरत की वजह से हुआ बनारस को नुकसान

टीओआई के मुताबिक इन बुनकरों का इल्जाम है कि सूरत ने न केवल साड़ियों की नकल तैयार कर वाराणसी के हैंडलूम कारोबार को चोट पहुंचाई है, बल्कि उसके अच्छे कलाकार भी छीन लिए हैं।

खास तरह की साड़ी पर कलाकारी को लेकर राष्ट्रपति अवॉर्ड जीत चुके बुनकर नोमान अब्दीन ने कहा, "सूरत का उभरना और बनारस के कपड़ा उद्योग डूबना कमोबेश एक साथ हुआ है।"

कोयलाबाजार, रेवाड़ीतालाब, बजरदीहा और बड़ी बाजार जैसे इलाकों में यही बातें सुनने को मिलती हैं। मदनपुरा के अब्दुल रहीम के मुताबिक बनारस की बुनकरों की किस्मत तब खराब हुई, जब सूरत ने पावरलूम पर पारंपरिक हैंडलूम डिजाइन की नकल तैयार करने का काम सीख लिया।

सूरत में कम दाम में तैयार होती है सिल्क साड़ी

बनारसी साड़ियों की बुनकरी में अब भी चाइनीज सिल्क और कॉटन जैसे कुदरती धागों का इस्तेमाल होता है। ये महंगे तो हैं ही, साथ ही अपने साथ प्रयोग भी नहीं करने देते।

इसके उलट सूरत की कपड़ा मिलें बड़े पैमाने पर सिंथेटिक और पॉलिएस्टर यार्न तैयार करने में सक्षम हैं, जो हूबहू असल सिल्क की तरह दिखती है, जो बनारस का गौरव माना जाता है।

यही वजह है कि दोनों साड़ियों के दामों में भारी अंतर है। स्थानीय बुनकरों के मुताबिक असल बनारसी साड़ी की लागत 10 हजार रुपए तक होता है, जबकि सूरत में इसे 20 फीसदी दाम पर तैयार किया जा सकता है।

मंदी की वजह से सूरत की राह पकड़ी

शुरुआत में सूरत के कारोबारी और दलाल बनारसी डिजाइन चोरी करने के लिए बनारस या मुंबई आते थे, लेकिन अब यह काम कई ग्राफिक आर्टि‌स्ट को आउटसोर्स कर दिया जाता है।

अब्दीन ने कहा कि आर्थिक मंदी ने 90 के दशक में कई बुनकरों को सूरत की ओर रवाना कर दिया। जो यहां रह गए, वो ड्रेस और फर्निशिंग मेटेरियल जैसे दूसरे उत्पादों की प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

स्‍थानीय साड़ी कारोबारी महफूज ने कहा कि हालिया वक्‍त में केंद्रीय कपड़ा मंत्री दक्षिण या पश्चिमी राज्यों का रहा है। इसलिए नीतियां भी उन क्षेत्रों के उद्योगों को मदद देने के हिसाब से बनती रही हैं।

जीतने पर क्या करेंगे नरेंद्र मोदी?

अब्दीन ने कहा, "सब्सिडी वाला सिल्क यार्न कांजीवरम, हैदराबादी उप्पदा, मराठी पैठानी और गुजराती पाटन पटोला जैसे उद्योगों के लिए भी उपलब्‍ध है।" इसलिए अगर मोदी इस समुदाय को जीत लेते हैं, तो उद्योग अपने हाथों में मांगों की लंबी ‌फेहरिस्त लिए इंतजार कर रहा है।

आ‌र्थिक जानकार अरविंद मोहन का कहना है, "राज्य सरकार में सत्ता किसके पास है, यह अहम है। लेकिन मोदी जैसे ताकतवर सांसद, जो प्रधानमंत्री बन सकते हैं, बनारसी साड़ी उद्योग को विशेष दर्जा दिलाकर काफी अंतर पैदा कर सकते हैं।"

मोदी के सामने सवाल बड़ा है और जवाब खोजना कठिन होगा। उनके एक तरफ बनारस के बुनकर हैं और दूसरी तरह उनके अपने सूरत के कपड़ा कारोबारी। दोनों के बीच वो किसे चुनेंगे, जानना दिलचस्प रहेगा!

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