बुधवार, मार्च 26, 2014

फैलता कुनबा: कोई बन गया तो किसी को अभी है इंतजार

बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव नसीमुद्दीन
सिद्दीकी विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष हैं। पार्टी सुप्रीमो मायावती के अति विश्वासपात्र हैं। कई बड़े महकमों के मंत्री रहे हैं। अपने सियासी रसूख के दम पर उन्होंने पत्नी हुस्ना सिद्दीकी को विधान परिषद का सदस्य बनवा दिया। बेटा अफजल सिद्दीकी युवा हुआ तो उसे लेकर भी अंगड़ाइयां उठने लगीं। सियासत में बेटे की धमाकेदार एंट्री के लिए उन्हें लोकसभा का चुनाव मुफीद मौका लगा। बेटा अफजल अब फतेहपुर सीट से बसपा प्रत्याशी के रूप में अपनी सियासी पारी का आगाज कर रहा है।
सिर्फ नसीमुद्दीन ही नहीं, ऐसी कई शख्सियतें हैं जो खुद राजनीति में गहरी जड़ें जमाए हुए हैं लेकिन परिवार के राजनीतिक रसूख का दायरा बढ़ाना चाहते हैं। लोकसभा चुनाव ने उनके भीतर सुलग रही राजनीतिक महत्वाकांक्षा की भट्ठी को जमकर हवा दी है। सियासी रसूख का दायरा बढ़ाने के लिए उन्होंने परिवार के नये चेहरों को चुनाव मैदान में उतारा है। अमरोहा की हसनपुर सीट से विधायक पंचायती राज राज्य मंत्री कमाल अख्तर को ही लीजिये। राज्य मंत्री की हैसियत से उन्हें लाल बत्ती मिली हुई है लेकिन वह इतने से ही संतुष्ट नहीं हैं। चाहते हैं कि राजनीति में उनके परिवार का दखल बढ़े। इसलिए पत्नी हुमैरा अख्तर को अमरोहा से सपा का टिकट दिला दिया। हुमैरा का यह पहला चुनाव है।
बरेली के भोजीपुरा विधानसभा क्षेत्र के विधायक शहजिल इस्लाम भी सियासी परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता इस्लाम साबिर भी विधायक रह चुके हैं। बरेली के कैंट विधानसभा क्षेत्र से पहली बार 2002 और उसके बाद भोजीपुरा से लगातार दूसरी बार विधायक चुने गए शहजिल भी घर में सिर्फ विधायकी से संतुष्ट नहीं है। उन्होंने पिछला विधानसभा चुनाव तो इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल के टिकट पर जीता था लेकिन परिवार का राजनीतिक प्रभुत्व बढ़ाने के लिए इस चुनाव में पत्नी आयशा इस्लाम को टिकट दिला दिया समाजवादी पार्टी का। पहली बार उतरीं आयशा पर अब बरेली में साइकिल को रफ्तार देने की जिम्मेदारी है।
पूर्ववर्ती मायावती सरकार में मंत्री रहे ठाकुर जयवीर सिंह और उनकी पत्‍‌नी व अलीगढ़ की बसपा सांसद राजकुमारी चौहान भी अपने परिवार की राजनीतिक वंशवृद्धि करना चाहती हैं। अपने पुत्र डॉ.अरविंद कुमार सिंह की लांचिंग अलीगढ़ से बतौर बसपा प्रत्याशी की है।
आगरा के भदावर राजघराने का भी सियासत से पुराना नाता रहा है। यहां के राजा महेंद्र रिपुदमन सिंह छह बार विधायक चुने गए, सूबे में मंत्री भी रहे। उनके बाद उनके पुत्र महेंद्र अरिदमन सिंह ने उनकी राजनीतिक विरासत संभाली। आगरा के बाह विधानसभा क्षेत्र से छह बार विधायक चुने गए महेंद्र अरिदमन अखिलेश सरकार में स्टांप एवं पंजीयन मंत्री हैं। घर में सिर्फ एक लालबत्ती से वह भी मुतमईन नहीं हैं इसलिए फतेहपुर सीकरी सीट से अपनी पत्‍‌नी पक्षालिका सिंह को सपा का टिकट दिलाया। 2012 के विधानसभा चुनाव में आगरा की खैरागढ़ सीट से नाकामयाब रहीं पक्षालिका को चुनावी चक्रव्यूह भेदने का इंतजार है। विधानसभा में बसपा विधानमंडल दल के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य स्वयं मायावती सरकार में मंत्री रहे हैं। परिवार की राजनीतिक ताकत को बढ़ाने के लिए बेटी संघमित्रा मौर्य को मैनपुरी से पार्टी का उम्मीदवार बनवाया है। वैसे उन्होंने यह कोशिश 2012 के विधानसभा चुनाव में भी की थी लेकिन तब एटा की अलीगंज सीट पर संघमित्रा को हार का सामना करना पड़ा था। हुमैरा अख्तर, आयशा इस्लाम, अफजल सिद्दीकी, संघमित्रा, अरविंद सिंह और पक्षालिका सिंह सियासी दिग्गजों के परिवारों में कुछ ऐसे भी चेहरे हैं जो किन्हीं वजहों से लोकसभा चुनाव में उतरने से रह गए या उम्मीदवारी को लेकर जिनका मामला पाइपलाइन में है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह के पुत्र पंकज सिंह के भी चुनावी समर में उतरने की चर्चाएं गर्म थीं लेकिन फिलहाल यह इरादा मुल्तवी कर दिया गया है। संत कबीर नगर सीट पर भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी के पुत्र शरद त्रिपाठी की उम्मीदवारी को लेकर अटकलों का दौर जारी है। पिछले लोकसभा चुनाव में इस सीट पर शरद दूसरे नंबर पर थे।

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