नई दिल्ली चुनावी हिंसा के लिए बदनाम रहे उत्तर प्रदेश और बिहार में चुनाव आयोग ने एक-एक बूथ के हिसाब से सुरक्षा बलों की मौजूदगी का पुख्ता इंतजाम किया है। खासतौर पर उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील सीटों का विशेष ध्यान रखा गया है। आयोग ने सुनिश्चित किया है कि किसी भी चरण में आठ-नौ से अधिक सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील सीटों पर मतदान न हो।
यूपी में सांप्रदायिक दंगों और झड़पों की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए मतदान को इसकी छाया से बचाना चुनाव आयोग के लिए बड़ी चुनौती थी। इसी कारण चुनाव की रणनीति ऐसी बनाई गई है, जिससे सुरक्षा बलों की आवाजाही में दिक्कत न हो और हर चरण में प्रत्येक बूथ पर उनकी पर्याप्त मौजूदगी सुनिश्चित की जा सके। आयोग की सावधानी को इससे समझा जा सकता है कि तीसरे और चौथे चरण के बीच केवल दो दिन का अंतर होने के कारण राज्य में चौथे चरण में मतदान नहीं रखा गया।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर ज्यादा ध्यान:
उत्तर प्रदेश में चुनाव का आगाज 10 अप्रैल को तीसरे चरण से दंगों से लहुलुहान हुए मुजफ्फरनगर और उसके पास की सीटों से हो रहा है। इनमें सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील सहारनपुर, कैराना, बिजनौर और मेरठ लोकसभा क्षेत्र शामिल हैं। जबकि 17 अप्रैल को पांचवें चरण में 11 सीटों पर चुनाव होंगे। इनमें मुरादाबाद, नागिया, रामपुर, संभल जैसी छह सीटों को सांप्रदायिक रुप से संवेदनशील माना जाता है। इसके एक हफ्ते बाद 24 अप्रैल को छठे चरण में 12 सीटों पर चुनाव होंगे, जिनमें फिरोजाबाद मैनपुरी, बदायूं और पीलीभीत जैसी आठ सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील सीटें हैं। 1सातवें चरण यानी 30 अप्रैल को 15 सीटों पर चुनाव होना है, जिनमें उन्नाव और मोहनलालगंज दो सीटें संवेदनशील हैं, जबकि आठवें चरण यानी सात मई को 15 सीटों पर होने वाले चुनाव में फैजाबाद, अंबेडकरनगर, बहराइच और कैसरगंज जैसी संवेदनशील सीटें हैं। यहां अंतिम चरण में 12 मई को 18 सीटों पर होने वाले चुनाव में कुशीनगर, आजमगढ़, सलेमपुर जैसी संवेदनशील सीटें हैं।
बिहार में किसी को मतदान से रोकने न देने की रणनीति:
बिहार में बूथ लूटने और कमजोर तबके को मतदान से रोकने की शिकायतों के अनुभव को ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग ने हर चरण को बराबर सीटों में बांट दिया है।
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