गुरुवार, फ़रवरी 06, 2014

चुनाव प्रचारों में इसबार नहीं दिख रहा मंदिर मुद्दा

अयोध्या । राम मंदिर आंदोलन पिछले कई चुनावों में भले निर्णायक रहा हो पर इस बार के लोकसभा चुनाव के मोर्चे पर इस आंदोलन की भूमिका नगण्य है। न केवल भाजपा के मौजूदा प्रतीक पुरुष नरेंद्र मोदी राम मंदिर मुद्दे का जिक्र करने से परहेज कर रहे हैं, बल्कि राम मंदिर आंदोलन के वाहक भी चुनाव को लेकर उत्सुकता नहीं दिखा रहे हैं।
मंदिर आंदोलन की तरह अमूमन चुनावी मौकों पर भी गहमा-गहमी का केंद्र बने रहने वाले अयोध्या के कारसेवकपुरम् से भी आसन्न चुनाव के मोर्चे पर उदासीनता बयां होती है। कारसेवकपुरम के ही सामने नाली साफ कर रहे समाजसेवी संत रामशरणदास कहते हैं कि मंदिर आंदोलन ठंडे बस्ते में है और राजनीति में भी इसकी भूमिका सीमित हो चुकी है। हालांकि उनके जेहन में 90 के दशक के कई चुनावों का परिदृश्य जिंदा है, जब मंदिर आंदोलन के नायक अनेकानेक संत-महंत चुनावी समर में सीधे भागीदार होते रहे और उन्हीं का दिया हुआ जय श्रीराम का नारा भाजपा का प्रमुख हथियार बना रहा। बजरंग दल के विभाग संयोजक राजू दास के अनुसार यह सही है कि चुनावी फलक से मंदिर आंदोलन ओझल है किंतु इसका यह आशय नहीं कि मंदिर आंदोलन की वाहक शक्तियां चुनाव को लेकर उदासीन हैं। सभी लोग नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए हर संभव यत्‍‌न करने को तैयार हैं।
मोदी के लिए हिंदुत्व का वास्ता
चुनावी मोर्चे पर मंदिर मुद्दा हाशिए पर होने के बावजूद मंदिर आंदोलन से जुड़े साधु संत चुनावी कमान संभालने की तैयारी कर रहे हैं। विहिप के प्रांतीय मीडिया प्रभारी शरद शर्मा के अनुसार हिंदुत्व को व्यापक संदर्भ में देखते हुए संत नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री होते देखना चाह रहे हैं और इसके लिए संत 20 फरवरी से जन जागरण यात्राएं शुरू करेंगे।

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