नई दिल्ली। यह चुनाव परंपरागत राजनीति करने वालों के लिए खतरे की घंटी की तरह है। नवगठित आम आदमी पार्टी ने जिस तरह से अत्यंत कम समय में बिल्कुल जमीन से जुड़े मुद्दों को उठाकर राष्ट्रीय राजधानी में राजनीतिक भूचाल ला दिया है। राजनीतिक दिग्गजों को उस पर मंथन करना होगा कि उन्हें आगे क्या रणनीति अपनानी चाहिए?
फिलहाल कांग्रेस में करारी हार के बाद भारी मायूसी का माहौल है। चुनाव परिणामों से भाजपाई थोड़े खुश तो हैं लेकिन पूर्ण बहुमत नहीं मिलने का मलाल पार्टी नेताओं की बातों से साफ झलक रहा है। आम आदमी पार्टी में जबरदस्त जश्न का माहौल है। पिछले साल दो अक्टूबर को गांधी जयंती के मौके पर गठित किए गए इस दल ने कांग्रेस के किले को तो ध्वस्त किया ही है, सूबे के तमाम समीकरणों को भी उलट-पलट कर रख दिया है।
इस चुनाव की खास बात यह भी है कि पिछले चुनाव में 14 फीसद मत लाने वाली बहुजन समाज पार्टी का भी इस बार सफाया हो गया है। पिछले चुनाव में दो सीटों पर जीत दर्ज करने वाली यह पार्टी इस बार एक भी सीट नहीं जीत पाई है। चुनाव मैदान में उतरे बाकी अन्य दलों को भी सफलता नहीं मिल पाई है। सबसे बड़ा झटका शीला दीक्षित की सरकार को लगा है जिसे जनता ने जमींदोज कर दिया। कांग्रेस दहाई का आंकड़ा नहीं पार कर सकी।
दिल्ली में फ्लाईओवर, सड़कों व रोशनी की चकाचौंध से विकास के नारे देकर चौथी बार सत्ता में आने का दावा कर रहीं कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर भाजपा के अध्यक्ष राजनाथ सिंह तक सभी ने आप की धमक को न सिर्फ महसूस किया, बल्कि यह भी स्वीकार किया कि अरविंद केजरीवाल ने अपनी नई राजनीति से परंपरागत सियासत को कड़ा संदेश दिया है। चुनाव परिणाम के बाद दीक्षित ने भी अपनी हार स्वीकार करते हुए कहा कि उनसे दिल्ली की जनता का मूड भांपने में चूक हुई। भाजपा नेता भी तेल और उसकी धार देखने की रणनीति के तहत फिलहाल चुप रहने की रणनीति पर चलने का मूड बना रहे हैं।
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