सोमवार, दिसंबर 09, 2013

विधानसभा चुनाव: ये हैं जीत और हार के प्रमुख फैक्टर्स

इसके अनुपात पर मतभेद संभव है, लेकिन चुनावी सूबों के नतीजों में नरेंद्र मोदी इफेक्ट का असर जरूर दिखा। मध्य प्रदेश में 2003 से चली आ रही सत्ता की पारी बचाने में और पड़ोसी राज्य राजस्थान में कांग्रेस से राज छीनने में मोदी की सभाओं का भी असर दिखा। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और भाजपा की जीत का अंतर भले ही सबसे कम रहा हो , लेकिन रमन सरकार के लिए तीसरी पारी जुटाने में भी मोदी असर खारिज नहीं किया जा सकता ।
रमन का रंग
मोदी के बाद रमन सिंह भाजपा के दूसरे ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिनकी अगुआई में भाजपा को सूबे में तीसरी बार सत्ता हासिल हुई । मुकाबला बेहद कड़ा होने और सत्ता विरोधी विपक्षी प्रचार के बावजूद रमन अपना किला बचाने में कामयाब हुए इसमें उनके व्यक्तिगत बेदाग छवि का बड़ा योगदान रहा।
शिवराज फैक्टर
मध्य प्रदेश की सत्ता में भाजपा की हैट्रिक के पीछे बड़ा फैक्टर शिवराज सिंह चौहान की आम आदमी छवि और सूबे में व्यक्तिगत लोकप्रियता भी रहा । शिवराज की अगुआई में भाजपा ने सत्ता विरोधी हवा को नकारने के साथ पिछले चुनाव से भी अधिक सीटें निकालने का करिश्मा कर दिखाया। मप्र वह सूबा है जहां भाजपा के पीएम उम्मीदवार मोदी ने भी सबसे कम सभाएं कीं।
केजरीवाल का करिश्मा
चुनाव प्रचार में अरविंद केजरीवाल अपने रेडियो संदेश में कहते थे दिल्ली में कुछ अद्भुत हो रहा है, आम आदमी पार्टी की जबरदस्त लहर है। सचमुच नतीजे भी अद्भुत हीं रहे। तीन बार से मुख्यमंत्री बनती आ रहीं शीला दीक्षित चुनावी राजनीति के नौसिखिए केजरीवाल के हाथों भारी मतों से हार गई। महज एक साल पुरानी पार्टी दिल्ली विधानसभा की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई।
हार के फैक्टर
बेअसर राहुल
कई चुनावों में सघन प्रचार अभियानों के वाबजूद कांग्रेस का नया चेहरा राहुल गांधी जनता को लुभाने में कामयाब नहीं हो सके । इस कड़वे सच को कांग्रेसी नेता भी अकेले में मानते हैं। छत्तीसगढ़ में राहुल की प्रचार सभाओं में दिखाई पड़ी भीड़ भी स्थानीय स्तर पर भाजपा सरकार के खिलाफ नराजगी के कारणों को मतदाताओं के भरोसे में नहीं बदल पाई। राहुल फार्मूले से राजस्थान और राजस्थान में प्रत्याशी चयन का प्रयोग भी धरा रह गया।
महंगे मनमोहन
महंगाई और केंद्र सरकार की मनमोहन सरकार के खिलाफ आम लोगों की नराजगी चुनाव के दौरान कांग्रेस के हक में सत्ता विरोधी लहर पर भी भारी पड़ी। मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में कांग्रेस से आई परिवर्तन की पुकार को जनता ने अनसुना नहीं किया। वहीं दिल्ली और राजस्थान में कांग्रेस के खिलाफ बदलाव की लहर का समर्थन दिया।
गुटबाजी का कैंसर
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में अच्छी संभावना के बावजूद कांग्रेस गुटबाजी की अपनी पुरानी बीमारी के कारण जीत की जमीन तैयार करने में नाकामयाब रही। राजस्थान में भी टिकट बंटवारे से लेकर प्रचार के दौरान स्थानीय नेताओं की आपसी खिंचतान नजर आती रही।
जोगी इफेक्ट
छत्तीसगढ़ में जीत के सबसे करीब पहुंची कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं पर उसके पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के खिलाफ स्थानीय धारणाओं ने खासा असर किया । नक्सली हमले में अपने पांच नेताओं को खोने के बावजूद भीतरघात के शक ने कांग्रेस के लिए संवेदना लहर को भी नहीं बनने दिया।

कोई टिप्पणी नहीं: