नई दिल्ली। मुजफ्फरनगर दंगों पर सुप्रीम कोर्ट के कड़े
रुख के बाद सभी राजनीतिक दलों और उनके नेताओं को कानून का डर सताने लगा है।
राजनेताओं को यह आशंका खासतौर से परेशान करने लगी है कि कहीं मामला
सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआइ या फिर एसआइटी [विशेष जांच टीम] तक न
पहुंच जाए। मुजफ्फरनगर दंगों में अपने पार्टी नेताओं, विधायकों के नामजद
होने पर भाजपा और बसपा जैसे दलों का विरोध और सियासत मुखर है। समाजवादी
पार्टी भी कह रही है कि जिस किसी ने भी दंगे को हवा दी और उसके खिलाफ सुबूत
हैं तो उसे छोड़ा नहीं जाएगा।
इन राजनीतिक पेशबंदियों के बावजूद गुरुवार को मुजफ्फरनगर दंगे की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के रुख के बाद राज्य सरकार और सपा के उन नेताओं के माथे पर भी पसीना आने लगा है, जिन्होंने दंगों के दौरान प्रत्यक्ष या परोक्षरूप से कोई भूमिका निभाई है। उन्हें यह डर अभी से परेशान करने लगा है कि सुप्रीम कोर्ट ने यदि सीबीआइ या फिर एसआइटी से जांच कराई तो फिर अफसर तो फंसेंगे ही, दंगे में राजनीति चमकाने में लगे नेता भी नहीं बचेंगे।
समाजवादी पार्टी को भी अपने कुछ नेताओं को लेकर कुछ इसी तरह की चिंता होने लगी है। सपा के एक नेता ने कहा भी, 'दंगे की अंदरूनी कहानी पर स्टिंग ऑपरेशन में कुछ पुलिस व प्रशासनिक अफसरों के खुलासे की जांच के लिए कमेटी जरूर बन गई है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यदि खुद की निगरानी में सीबीआइ या एसआइटी जांच कराई तो फिर वही अफसर मुंह खोलने से नहीं हिचकेंगे, जबकि रही-सही कसर कई नेताओं व अफसरों की मोबाइल कॉल डिटेल्स भी पूरी कर देगी। गुजरात दंगों की नजीर सबके सामने है।'
मालूम हो कि मुजफ्फरनगर दंगों से पहले भाजपा, बसपा, सपा और कांग्रेस के कई नेताओं के भड़काऊ भाषणों का सच मीडिया चैनलों के जरिये लोगों के सामने आ चुका है। उसी को आधार बनाकर कई नेताओं के खिलाफ न सिर्फ एफआइआर दर्ज कराई जा चुकी है, बल्कि गिरफ्तारियां भी शुरू हो चुकी हैं।
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