रविवार, मार्च 09, 2014

मुजफ्फरनगर: नल का साथ, कितना मजबूत होगा 'हाथ'?

मुजफ्फरनगर। सियासी दंगल में 'नल' की 'हत्थी' के सहारे 'हाथ' को मजबूत करने का यह गठजोड़ कितना दमदार होगा यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन पिछले चुनावों में लगातार कांग्रेस के 'हाथ' की पकड़ मुजफ्फरनगर संसदीय सीट पर ढीली पड़ती रही है। अब देखना यह है कि कमजोर 'हाथ' नल से कितना 'पानी' निकाल पाता है।
मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक दंगे से जाटलैंड में मुस्लिम गठजोड़ की बदौलत सियासत करने वाले रालोद के माथे पर बदलते मौजूदा राजनैतिक हालातों में पेशानी है। यूपीए सरकार में शरीक रालोद जाटलैंड की नाखुशी दूर करने को रास्ता ढूंढने में जुटा रहा। जाट आरक्षण की घोषणा को रालोद से नाराजगी दूर करने की कड़ी के रूप में देखा गया। रालोद के रणनीतिकार जाट आरक्षण को चुनावी नैया पार लगाने को 'संजीवनी' मान रहे हैं।
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 के बाद वर्ष 1999 के संसदीय चुनाव में कांग्रेस को संसदीय सीट पर सफलता मिली। 99 में कांग्रेस के सईदुज्जमा चुनाव जीते। इसके बाद से सीट पर कांग्रेस लगातार जीत के लिये जूझ रही है। पिछले दो चुनावों में कांग्रेस के गिरते वोट बैंक ने उसे चौथे पायदान पर पहुंचा दिया। अब देखना यह है कि यह गठबंधन पारंपरिक वोट बैंक को अपने पक्ष में मोड़ पाता है या नहीं?
जिले में दंगे के बाद 16 सितंबर को पीएम मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के संग दंगा पीड़ितों के बीच पहुंचे सांसद राहुल गांधी ने सियासी नब्ज टटोली थी, लेकिन समाजवादी की मुस्लिमों में पकड़ को ये दिग्गज ढीली नहीं कर पाए।
उधर, कांग्रेस-रालोद गठबंधन से घोषित सूरत सिंह वर्मा पिछले 2004 के आम चुनाव में बसपा से मुजफ्फरनगर सीट पर चुनाव लड़ चुके हैं। इस चुनाव में बसपा प्रत्याशी 182290 वोट हासिल कर तीसरे नंबर पर रहे थे। सहारनपुर के नकुड़ के कुराली गांव निवासी सूरत सिंह वर्मा गुर्जर बिरादरी से हैं। कांग्रेस का पंरपरागत वोट बैंक के साथ जाट और गुर्जर मतों का समीकरण क्या गुल खिलाता है, यह भविष्य के गर्भ में है।

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