बुधवार, दिसंबर 01, 2010

एड्स ला इलाज बीमारी

उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण या उ.प्र.अ.स. (अंग्रेजीः एड्स) मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु मा.प्र.अ.स., संक्रमण के बाद की स्थिति है, जिसमें मानव अपने प्राकृतिक प्रतिरक्षण क्षमता खो देता है। उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण स्वयं कोई बीमारी नही है पर उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण से पीड़ित मानव शरीर संक्रामक बीमारियों, जो कि जीवाणु और विषाणु आदि से होती हैं, के प्रति अपनी प्राकृतिक प्रतिरोधी शक्ति खो बैठता है क्योंकि मा.प्र.अ.स. रक्त में उपस्थित प्रतिरोधी पदार्थ लसीका-कोशो पर आर्क्म्ण करता है। उ.प्र.अ.स.पीड़ित के शरीर में प्रतिरोधक क्षमता के क्रमशः क्षय होने से कोई भी अवसरवादी संक्रमण, यानि आम सर्दी जुकाम से ले कर क्षय रोग जैसे रोग तक सहजता से हो जाते हैं और उनका इलाज करना कठिन हो जाता हैं। मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु संक्रमण को उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण की स्थिति तक पहुंचने में ८ से १० वर्ष या इससे भी अधिक समय लग सकता है। मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु से ग्रस्त व्यक्ति अनेक वर्षों तक संलक्षणों के बिना रह सकते हैं।

उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण वर्तमान युग की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है यान के ये एक महामार है। उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण के संक्रमण के तीन मुख्य कारण हैं - यौन द्वारा, रक्त द्वारा तथा माँ-शिशु संक्रमण द्वारा। राष्ट्रीय उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण नियंत्रण कार्यक्रम और ख्१, संयुक्त राष्ट्रसंघ उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण, दोनों ही यह मानते हैं कि भारत में ८० से ८५ प्रतिशत संक्रमण असुरक्षित विषमलिंगीध्विषमलैंगिक यौन संबंधों से फैल रहा हैख्१,। माना जाता है कि सबसे पहले इस रोग का विषाणुरू मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु, अफ्रीका के खास प्राजाति की बंदर में पाया गया और वहीं से ये पूरी दुनिया में फैला। अभी तक इसे लाइलाज माना जाता है लेकिन दुनिया भर में इसका इलाज पर शोधकार्य चल रहे हैं। १९८१ में उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण की खोज से अब तक इससे लगभग २ १ध्२ करोड़ लोग जान गंवा बैठे हैं।

उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण का प्रसार == उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण इन में से किसी भी कारण से फैल सकता है।



गुदा , योनिक या मौखिक मैथुन वीर्य, योनिक द्रव्य या प्रतिवीर्यक द्रव्य द्वारा,



रक्त संक्रामण



स्तनपान कराना माता से शीशु मे,



संदूषित अधस्तवक पिचकारीया

दुनिया भर में इस समय लगभग चार करोड़ 20 लाख लोग मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु का शिकार हैं। इनमें से दो तिहाई सहारा से लगे अफ्रीकी देशों में रहते हैं और उस क्षेत्र में भी जिन देशों में इसका संक्रमण सबसे ज्यादा है। वहाँ हर तीन में से एक वयस्क इसका शिकार है। दुनिया भर में लगभग 14,000 लोगों के प्रतिदिन इसका शिकार होने के साथ ही यह डर बन गया है कि ये बहुत जल्दी ही एशिया को भी पूरी तरह चपेट में ले लेगा। जब तक कारगर इलाज खोजा नहीं जाता, उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण से बचना ही उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण का सर्वोत्तम उपचार है।









भारत में उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण संक्रमित लोगों की बढ़ती संख्या के संभावित कारण









आम जनता को उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण के विषय में सही जानकारी न होना









उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण तथा यौन रोगों के विषयों को कलंकित समझना









पाठशालाओं में यौन शिक्षण व जागरूकता बढ़ाने वाले पाठ्यक्रम का अभाव









कई धार्मिक संगठनों का शिश्वावेष्टन गर्भ निरोधक् के प्रयोग को अनुचित ठहराना आदि।

1 भारत में उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण

2 उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण से कैसे बचें

3 उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षणइन कारणों से नहीं फैलता

4 उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षणऔर मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु में अंतर

5 उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण के लक्षण

6 प्रगत अवस्था में उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण के लक्षण

7 उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण रोग का उपचार

8 उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण ग्रसित लोगों के प्रति व्यवहार

भारत में उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण

भारत में वास्तविक उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण के शिकार लोगों की संख्या सूचित रोगीयों की संख्या से कहीं अधिक मानी जाती है। वर्ष 2003 के अंत में भारत में उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षणके अनुमानित रोगियों की संख्या

वयस्क: 50,00,000

महिला: 19,00,000

बच्चे: 1,20,000

कुल: 70,20,000

पिथौरागढ मेँ 533 रोगी इस विषाणु से ग्रसित हैं।

उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण से कैसे बचें
अपने जीवनसाथी के प्रति वफादार रहें। एक से अधिक व्यक्ति से यौनसंबंध ना रखें।
यौन संबंध (मैथुन) के समय शिश्वावेष्टन गर्भ निरोधक् का सदैव प्रयोग करें।
यदि आप मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु संक्रमित या उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण ग्रसित हैं तो अपने जीवनसाथी से इस बात का खुलासा अवश्य करें। बात छुपाये रखनें तथा इसी स्थिती में यौन संबंध जारी रखनें से आपका साथी भी संक्रमित हो सकता है और आपकी संतान पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है।
यदि आप मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु संक्रमित या उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण ग्रसित हैं तो रक्तदान कभी ना करें।

रक्त ग्रहण करने से पेहले रक्त का मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु परीक्षण कराने पर जोर दें।
यदि आप को मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु संक्रमण होने का संदेह हो तो तुरंत अपना मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु परीक्षण करा लें। उल्लेखनीय है कि अक्सर मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु के कीटाणु, संक्रमण होने के 3 से 6 महीनों बाद भी, मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु परीक्षण द्वारा पता नहीं लगाये जा पाते। अतः तीसरे और छठे महीने के बाद मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु परीक्षण अवश्य दोहरायें।

उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षणइन कारणों से नहीं फैलता

मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु संक्रमित या उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण ग्रसित व्यक्ति से हाथ मिलाने से

मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु संक्रमित या उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण ग्रसित व्यक्ति के साथ रहने से या उनके साथ खाना खाने से।

एक ही बर्तन या रसोई में स्वस्थ और मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु संक्रमित या एड्स ग्रसित व्यक्ति के खाना बनाने से।

उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षणऔर मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु में अंतर.मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु एक अतिसूक्ष्म विषाणु हैं जिसकी वजह से उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण हो सकता है। उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण स्वयं में कोई रोग नहीं है बल्की एक संलक्षण है। यह मनुष्य की अन्य रोगों से लड़ने की नैसर्गिक प्रतिरोधक क्षमता को घटा देता हैं। प्रतिरोधक क्षमता के क्रमशः क्षय होने से कोई भी अवसरवादी संक्रमण, यानि आम सर्दी जुकाम से ले कर फुफ्फुस प्रदाह, टीबी, क्षय रोग, कर्क रोग जैसे रोग तक सहजता से हो जाते हैं और उनका इलाज करना कठिन हो जाता हैं और मरीज की मृत्यु भी हो सकती है। यही कारण है की उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण परीक्षण महत्वपूर्ण है। सिर्फ उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण परीक्षण से ही निश्चित रूप से संक्रमण का पता लगाया जा सकता है।

उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण के लक्षण

अक्सर मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु से संक्रमित लोगों में लम्बे समय तक उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण के कोई लक्षण नहीं दिखते। दीर्घ समय तक ( 3, 6 महीने या अधिक ) तक मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु भी औषधिक परीक्षा में नहीं उभरते। अधिकांशतः उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण के मरीजों को जुकाम या विषाणु बुखार हो जाता है पर इससे उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण होने की पहचान नहीं होती। उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण के कुछ प्रारम्भिक लक्षण हैं

बुखार

सिरदर्द

थकान

हैजा

मतली व भोजन से अरुचि

लसीकाओं में सूजन

ध्यान रहे कि ये समस्त लक्षण साधारण बुखार या अन्य सामान्य रोगों के भी हो सकते हैं। अतः उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण की निश्चित रूप से पहचान केवल, और केवल, औषधीय परीक्षण से ही की जा सकती है व की जानी चाहिये।

प्रगत अवस्था में उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण के लक्षण

तेजी से अत्याधिक वजन घटना

सूखी खांसी

लगातार ज्वर या रात के समय अत्यधिक/असाधारण मात्रा में पसीने छूटना

जंघाना, कक्षे और गर्दन में लम्बे समय तक सूजी हुई लसिकायें

एक हफ्ते से अधिक समय तक दस्त होना। लम्बे समय तक गंभीर हैजा।

फुफ्फुस प्रदाह

चमड़ी के नीचे, मुँह, पलकों के नीचे या नाक में लाल, भूरे, गुलाबी या बैंगनी रंग के धब्बे।

निरंतर भुलक्कड़पन, लम्बे समय तक उदासी और अन्य मानसिक रोगों के लक्षण।

उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण रोग का उपचार
औषधी विज्ञान में उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण के इलाज पर निरंतर संशोधन जारी हैं। भारत, जापान, अमरीका, युरोपीय देश और अन्य देशों में इस के इलाज व इससे बचने के टीकों की खोज जारी है। हालांकी उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण के मरीजों को इससे लड़ने और उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण होने के बावजूद कुछ समय तक साधारण जीवन जीने में सक्षम हैं परंतु अंत में मौत निश्चित हैं। उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण लाइलाज हैं। इसी कारण आज यह भारत में एक महामारी का रूप हासिल कर चुका है। भारत में उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण रोग की चिकित्सा महंगी है, उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण की दवाईयों की कीमत आम आदमी की आर्थिक पहुँच के परे है। कुछ विरल मरीजों में सही चिकित्सा से 10-12 वर्ष तक उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण के साथ जीना संभव पाया गया है, किंतु यह आम बात नही है।

ऐसी दवाईयाँ अब उपलब्ध हैं जिन्हें प्रति उत्त्क्रम-प्रतिलिपि-किण्वक विषाणु चिकित्सा ख्ंदजप तमअमतेम जतंदेबतपचज मद्रलउम अपतंस जीमतंचल वत ंदजप-तमजतवअपतंस जीमतंचल, दवाईयों के नाम से जाना जाता है। सिपला की ट्रायोम्यून जैसी यह दवाईयाँ महँगी हैं, प्रति व्यक्ति सालाना खर्च तकरीबन 15000 रुपये होता है, और ये हर जगह आसानी से भी नहीं मिलती। इनके सेवन से बीमारी थम जाती है पर समाप्त नहीं होती। अगर इन दवाओं को लेना रोक दिया जाये तो बीमारी फिर से बढ़ जाती है, इसलिए एक बार बीमारी होने के बाद इन्हें जीवन भर लेना पड़ता है। अगर दवा न ली जायें तो बीमारी के लक्षण बढ़ते जाते हैं और उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण से ग्रस्त व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है।

एक अच्छी खबर यह है कि सिपला और हेटेरो जैसे प्रमुख भारतीय दवा निर्माता मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु पीड़ितों के लिये शीघ्र ही पहली एक में तीन मिश्रित निधिक अंशगोलियाँ बनाने जा रहे हैं जो इलाज आसान बना सकेगा (सिपला इसे वाईराडे के नाम से पुकारेगा)। इन्हें आहार व औषध मंत्रि-मण्डल से भी मंजूरी मिल गई है। इन दवाईयों पर प्रति व्यक्ति सालाना खर्च तकरीबन 1 लाख रुपये होगा, संबल यही है कि वैश्विक कीमत से यह 80-85 प्रतिशत सस्ती होंगी।
उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण ग्रसित लोगों के प्रति व्यवहार

उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण का एक बड़ा दुष्प्रभाव है कि समाज को भी संदेह और भय का रोग लग जाता है। यौन विषयों पर बात करना हमारे समाज में वर्जना का विषय रहा है। निःसंदेह शतुरमुर्ग की नाई इस संवेदनशील मसले पर रेत में सर गाड़े रख अनजान बने रहना कोई हल नहीं है। इस भयावह स्थिति से निपटने का एक महत्वपूर्ण पक्ष सामाजिक बदलाव लाना भी है। उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण पर प्रस्तावित विधेयक ख्२,को अगर भारतीय संसद कानून की शक्ल दे सके तो यह भारत ही नहीं विश्व के लिये भी एड्स के खिलाफ छिड़ी जंग में महती सामरिक कदम सिद्ध होगा।

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