शुक्रवार, मार्च 21, 2014

मोदी-आडवाणी में क्यों हुआ तीसरा युद्ध?

भोपाल की चाहत, मिला गांधीनगर काम नहीं आए आडवाणी के नाज-नखरे

दो दिन भाजपा के नींद-चैन चुराने वाले लालकृष्‍ण आडवाणी क्या चाहते हैं, यह सिर्फ वहीं बता सकते हैं। लेकिन एक बात तय है कि नाजुक वक्त पर अपनी पार्टी में खलबली मचाने का गुर उन्हें खूब आता है।

बुधवार से शुरू हुआ एक राजनीतिक ड्रामा गुरुवार शाम तक चला। यह जंग मोदी बनाम आडवाणी है और इस बार वयोवृद्ध नेता ने हमला बोलने के लिए लोकसभा सीट का हथियार चुना। कुछ दिन पहले उन्होंने कहा था कि वह अहमदाबाद से ही चुनाव लड़ना चाहते हैं, जहां से वो फिलहाल सांसद हैं। लेकिन जब गुजरात की सीटों पर उम्मीदवारों के ऐलान की बात आई, तो आडवाणी एक बार फिर रूठे।

उनके रूठने से जो सिलसिला शुरू हुआ, वो आरएसएस की डांट के बाद थमा। लेकिन तमाम नाज-नखरे दिखाने के बावजूद यह साफ हो गया कि इस वक्त भाजपा में मोदी-राजनाथ की इतनी चल रही है कि आडवाणी की जरा भी नहीं चल सकती। यह मोदी की उन पर तीसरी जीत है।


दो दिन भाजपा के नींद-चैन चुराने वाले लालकृष्‍ण आडवाणी क्या चाहते हैं, यह सिर्फ वहीं बता सकते हैं। लेकिन एक बात तय है कि नाजुक वक्त पर अपनी पार्टी में खलबली मचाने का गुर उन्हें खूब आता है।

बुधवार से शुरू हुआ एक राजनीतिक ड्रामा गुरुवार शाम तक चला। यह जंग मोदी बनाम आडवाणी है और इस बार वयोवृद्ध नेता ने हमला बोलने के लिए लोकसभा सीट का हथियार चुना। कुछ दिन पहले उन्होंने कहा था कि वह अहमदाबाद से ही चुनाव लड़ना चाहते हैं, जहां से वो फिलहाल सांसद हैं। लेकिन जब गुजरात की सीटों पर उम्मीदवारों के ऐलान की बात आई, तो आडवाणी एक बार फिर रूठे।

उनके रूठने से जो सिलसिला शुरू हुआ, वो आरएसएस की डांट के बाद थमा। लेकिन तमाम नाज-नखरे दिखाने के बावजूद यह साफ हो गया कि इस वक्त भाजपा में मोदी-राजनाथ की इतनी चल रही है कि आडवाणी की जरा भी नहीं चल सकती। यह मोदी की उन पर तीसरी जीत है।


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