शनिवार, मार्च 29, 2014

परदे के पीछे 'आप' का खामोश चेहरा हैं पंकज

नई दिल्ली। कनॉट प्लेस के हनुमान रोड स्थित आम आदमी पार्टी दफ्तर की पहली मंजिल पर आम लोगों को जाने की इजाजत नहीं है। वे तभी जा सकते हैं जब उन्हें बुलाया गया हो। दरअसल, तीन कमरों के इसी दफ्तर में तय की जाती है भविष्य की योजनाएं और रणनीति। मीडिया के शोरशराबे और आम लोगों के समर्थन या विरोध से परे एक साधारण सी मेज-कुर्सी पर बैठकर कुछ लोग चुपचाप अपना काम करते रहते हैं। पर्दे के पीछे के इन्हीं चेहरों में प्रमुख नाम है 47 वर्षीय पंकज गुप्ता।
छोड़ी 35 लाख सालाना की नौकरी
पंकज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं। आप से जुड़ने से पहले 25 वर्ष तक गुड़गांव स्थित इंफोटेक साफ्टवेयर कंपनी में प्रबंध निदेशक रहे हैं। उन्होंने अमेरिका में टीसीएस के लिए भी काम किया है। आम आदमी पार्टी का विस्तार हुआ और गत वर्ष जब मित्र अरविंद केजरीवाल ने उनका साथ मांगा तो फौरन 35-40 लाख रुपये सालाना वेतन की नौकरी छोड़ नई पारी की शुरुआत कर दी। दोनों एनजीओ परिवर्तन के लिए काम कर चुके हैं।
केजरी का ड्राइंग रूम बना रणनीतिक कक्ष
कनॉट प्लेस में पार्टी कार्यालय बनाने से पहले केजरीवाल का कौशांबी स्थित घर का ड्राइंग रूम रणनीतिक कक्ष हुआ करता था। पंकज वहीं केजरीवाल, योगेंद्र यादव, कुमार विश्वास, मनीष सिसोदिया, प्रशांत भूषण आदि नेताओं के साथ घंटों चर्चा और रणनीति बनाने में व्यस्त रहते। इसी दौरान बीच गुप्ता को चुनाव आयोग में दल के पंजीकरण और वित्तीय समर्थन जुटाने का काम भी सौंपा गया। चंदा जुटाने में कारोबारी समुदाय के साथ उनके संबंध काम आए और पार्टी को पैसा मिलने लगा। पंकज पर पैसा जुटाने के साथ ही स्वयंसेवकों की संख्या बढ़ाने, राज्यों में पार्टी कार्यालयों के विस्तार और लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों के चयन का जिम्मा भी था। यूं भी कहा जा सकता है कि केजरीवाल के लिए पंकज कुछ वैसे ही हैं जैसे नरेंद्र मोदी के लिए अमित शाह या सोनिया गांधी के लिए अहमद पटेल।
राजनीति में आने की थी चाहत
इलाहाबाद के मोतीलाल नेहरू रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाई कर चुके पंकज छात्र जीवन से ही राजनीति से जुड़ना चाहते थे। लेकिन उस समय कॉलेज में कोई राजनीतिक संगठन नहीं था। 2007 में उन्हें मौका मिला, जब कई एनजीओ, संठनों और विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने जनप्रतिनिधि मंच की स्थापना की। इसमें वह राजनीतिक आंदोलन के समन्वयक बने। संगठन ने नगर निगम चुनावों में उतरने का फैसला किया। उन्होंने जनता से संपर्क कर प्रत्याशी नामित करने को कहा। यही तरीका दिल्ली विस चुनाव में भी अपनाया।
लेकिन किशोर बेटा है कांग्रेस का समर्थक
लोकसभा चुनाव के मद्देनजर चुनौतियों को लेकर वह कहते हैं, 'पैसा सबसे बड़ी समस्या है। इसलिए मैंने पहले खासी बचत करने का फैसला किया था। पार्टी दफ्तर में काम करने वाले वालंटियर को भी खाने के अलावा कुछ नहीं मिलता।' उनकी पत्‍‌नी भी सॉफ्टवेयर पेशेवर हैं और फिलहाल छुट्टी लेकर पार्टी के काम में हाथ बंटाती हैं। घर में पंकज के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने किशोर बेटे मुदित को आप के नजरिये से चीजों को देखने के लिए मनाना है जो कांग्रेस का समर्थक है।

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