नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के आतंकी और 1993 बम धमाके के आरोपी देवेंदर पाल सिंह भुल्लर को बड़ी राहत दी है। भुल्लर की फांसी की सजा उम्रकैद में बदल दी गई है। फांसी की सजा उम्रकैद में बदलने के लिए केंद्र और दिल्ली सरकार ने सिफारिश की थी। कोर्ट ने भुल्लर की मानसिक बीमारी और दया याचिका के निपटारे में हुई देरी को आधार मानते हुए यह फैसला सुनाया है।
बता दें कि 1993 में दिल्ली हुए बम धमाके के आरोपी भुल्लर को फांसी की सजा सुनाई गई थी, जिसके बाद भुल्लर द्वारा दायर दया याचिका राष्ट्रपति ने खारिज कर दी थी, लेकिन दया याचिका के निपटारे में हुई आठ साल की देरी और खराब मानसिक हालत का हवाला देकर भुल्लर की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी। सबसे बड़ी अदालत से गुहार लगाई गई कि भुल्लर की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दी जाए।
पहले दिल्ली सरकार और हाल ही में केंद्र सरकार ने अपना रुख बदलते हुए भुल्लर की फांसी को उम्रकैद में बदलने पर सहमति जताई थी, जिसके बाद तय माना जा रहा था कि भुल्लर को शीर्ष अदालत से राहत मिल जाएगी।
क्या है मामला-
भुल्लर 1993 में यूथ कांग्रेस के दफ्तर पर बम धमाका करने का दोषी है। इस धमाके में नौ लोगों की मौत हो गई थी और 25 लोग घायल हो गए थे। गौरतलब है कि अगस्त 2001 में निचली अदालत ने भुल्लर को फांसी की सजा सुनाई और बाद में हाईकोर्ट ने इस पर मुहर लगा दी। 26 मार्च 2002 को सुप्रीम कोर्ट ने भुल्लर की अपील खारिज कर दी थी। भुल्लर ने 2003 में दया याचिका दायर की और 2011 में उसकी याचिका खारिज कर दी गई थी।
वोटबैंक के चलते बदला केंद्र सरकार का रुख-
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने जवाब सौंपने के आखिरी दिन फांसी की सजा उम्रकैद में बदलने पर सहमति जता दी थी। केंद्र ने कहा था कि सरकार अब मौत की सजा के पक्ष में नहीं है, क्योंकि 18 साल की देरी हो चुकी है। बता दें कि भुल्लर की फांसी पर केंद्र सरकार ने बीते 18 साल से कोई फैसला नहीं लिया था। पंजाब से अक्सर यह मांग उठती भी रही कि भुल्लर की फांसी उम्रकैद में तब्दील कर जाए, लेकिन सभी सरकारों ने इसे लटकाए रखा। अब चुनाव नजदीक हैं। कांग्रेस सरकार का मानना है कि भुल्लर के चलते कांग्रेस से दूर हुए परंपरागत सिख वोट इस फैसले से नजदीक आएंगे, जिसका लोकसभा चुनावों में सीधा फायदा मिलेगा।
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