नई दिल्ली। दिल्ली से निकल कर देश जीतने में जुटे पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एक बार फिर से सूबे की सियासत में सक्रिय हो गए हैं। रोड शो और चुनावी सभाओं से पहले उन्होंने राजनिवास का रुख किया और उपराज्यपाल नजीब जंग से मिलकर दिल्ली विधानसभा का चुनाव तुरंत कराने की मांग कर डाली।
सियासी हलकों में चर्चा यह हो रही है कि यह तो केजरीवाल को भी मालूम है कि विधानसभा के चुनाव इतनी जल्दी नहीं होने वाले तो फिर वे दबाव बनाने की यह सियासत क्यों कर रहे हैं? कहा यह जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के समर्थकों को पिछले विधानसभा चनाव का मंजर दिखाकर उन्हें अपने साथ जोड़े रखने का उनका यह नया प्रयोग हो सकता है।
जानकारों का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री दिल्ली की जनता को यह बताना चाहते हैं कि किस प्रकार कांग्रेस व भाजपा मिलकर दिल्ली में आम आदमी पार्टी का रास्ता रोक रहे हैं। उन्हें यह भी उम्मीद जरूर होगी कि यदि दिल्ली विधानसभा चुनाव की चर्चा शुरू हो जाए तो वे पुराना मंजर मतदाताओं को याद दिलाकर और दिल्ली के मतदाताओं में फिर से अपनी सरकार बनाने का उम्मीद जगाकर लोकसभा चुनाव में भी वोट बटोर पाएंगे। दिल्ली में लोकसभा चुनाव को लेकर पिछले दिनों हुए कुछ चुनावी सर्वे में कहा गया कि पिछले तीन महीनों में आम आदमी पार्टी का जनाधार खिसका है ओर कांग्रेस व भाजपा को इसका लाभ हो रहा है। इन चुनावी सर्वेक्षणों की हकीकत तो चुनाव परिणाम ही तय करेंगे लेकिन शहर के गली-मोहल्लों में जारी चर्चा में दो बातें बहुत साफ सुनी जा रही हैं। पहली बात यह है कि आम आदमी पार्टी के समर्थक भी इस बात से सहमत हैं कि केजरीवाल को सरकार चलानी चाहिए थी। उन्हें मैदान नहीं छोड़ना चाहिए था।
दूसरी बात उस मध्यम वर्ग की ओर से सुनाई दे रही है जिसने पिछले विधानसभा चुनाव में पहली बार कांग्रेस व भाजपा को एक ही तराजू में तौल, आम आदमी पार्टी को अपना समर्थन दिया था। जाहिर तौर पर आम आदमी पार्टी और इसके संयोजक अरविंद केजरीवाल के लिए यह सुखद स्थिति नहीं है।
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