बुधवार, मार्च 26, 2014

बड़ा फैसला: होगी 72,825 शिक्षकों की भर्ती

अगली सुनवाई 29 अप्रैल को होगीसुप्रीम कोर्ट के आदेश से होगी हजारों भर्तियां


सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में 72825 सहायक अध्यापकों को इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देश के मुताबिक नियुक्ति देने का आदेश जारी किया है।

सर्वोच्च अदालत ने हालांकि नियुक्ति प्रक्रिया को 31 मार्च तक पूरा करने के हाईकोर्ट के आदेश में बदलाव कर राज्य सरकार को इसके लिए 12 हफ्ते का समय प्रदान कर दिया।

साथ ही स्पष्ट किया कि नियुक्तियों का भविष्य इस मुद्दे पर सर्वोच्च अदालत की ओर से जारी किया गया अंतिम आदेश तय करेगा।

मायावती के शासनकाल में निकला था भर्ती विज्ञापन

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि यूपी सरकार के अगस्त, 2012 के शासनादेश को रद्द करने और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के शासनकाल में जारी किए गए नवंबर, 2011 के भर्ती विज्ञापन को सही ठहराने के हाईकोर्ट के फैसले में कोई कमी नहीं है।

ऐसे में हाईकोर्ट के आदेश पर रोक न लगाए जाने के बावजूद राज्य सरकार की ओर से उसके अनुपालन के लिए कदम न उठाया जाना अनुचित है।

इसलिए शीर्षस्थ अदालत राज्य सरकार को हाईकोर्ट के फैसले के मुताबिक, 72 हजार से अधिक सहायक अध्यापकों की नियुक्ति का आदेश देती है।

हाईकोर्ट पहले ही यूपी सरकार के पहले का किया था निरस्त

जस्टिस एचएल दत्तू व जस्टिस एसए बोबड़े की पीठ ने हालांकि प्रदेश सरकार की ओर से 31 मार्च तक नियुक्ति प्रक्रिया पूरी करने में असमर्थता जताए जाने पर तीन माह (12 हफ्तों) का समय प्रदान कर दिया।

याद रहे कि सपा सरकार ने 2012 में जारी किए गए शासनादेश में टीईटी को मात्र अर्हता माना था और चयन का आधार शैक्षणिक गुणांक कर दिया गया था।

इसी शासनादेश को हाईकोर्ट ने गत वर्ष 31 मई को निरस्त कर दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश में जारी रखा है। अब राज्य सरकार को टीईटी की मेरिट के अनुसार सहायक अध्यापकों की नियुक्ति करनी होगी।

राज्य सरकार की ओर से संशोधन किया जाना उचित नहीं

पीठ ने कहा कि एनसीटीई की ओर से शिक्षकों की भर्ती के लिए लागू की गई परीक्षा टीचर्स एजुकेशन ट्रेनिंग (टीईटी) में राज्य सरकार की ओर से संशोधन कर अपने मुताबिक किया जाना उचित नहीं है।

इस पर यूपी सरकार की ओर से पेश हुए अधिवक्ता शमशाद आलम ने कहा कि राज्य सरकार ने महज टीटीई को अपनाते हुए शैक्षणिक गुणांक को भी महत्व दिया है। तब पीठ ने कहा कि राज्य सरकार ने तमाम अभ्यर्थियों की ओर से टीईटी की परीक्षा पास करने के बाद इस मामले में शासनादेश जारी किया।

ऐसी स्थिति में राज्य सिर्फ एनसीटीई के नियमों के मुताबिक जा सकती है, कोई और तरीका अख्तियार नहीं कर सकती। राज्य सरकार ने इसका विरोध करते हुए कहा कि सिर्फ एनसीटीई के मुताबिक प्रदेश में किसी परीक्षा का कराया जाना तो थोपने जैसा है। क्योंकि प्रदेश सरकार ने एनसीटीई दिशा-निर्देशों को शासनादेश में नजरअंदाज नहीं किया है।

अगली सुनवाई 29 अप्रैल को होगी

यूपी सरकार की दलीलों पर पीठ ने कहा कि शासनादेश के सही और गलत ठहराए जाने के हाईकोर्ट के आदेश के मुद्दे पर अदालत सभी पक्षों की दलीलों पर लंबी सुनवाई कर गौर करेगी। लेकिन राज्य सरकार हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन करे और टीईटी में सफल होने वाले अभ्यर्थियों को परीक्षा की मेरिट के मुताबिक हमारे आदेश की तारीख से 12 हफ्तों में नियुक्ति करे।

अदालत इस मसले से संबंधित राज्य सरकार समेत अन्य याचिकाओं और टीईटी की अनिवार्यता पर 29 अप्रैल को अगली सुनवाई करेगी।

गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गत वर्ष 31 मई को सहायक शिक्षकों का चयन टीईटी की मेरिट के आधार पर किए जाने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने बसपा सरकार में 30 नवंबर, 2011 को जारी हुए भर्ती विज्ञापन को सही ठहराया। साथ ही मौजूदा सरकार के 31 अगस्त, 2012 के शासनादेश को रद्द कर दिया है।

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