लुधियाना. 1985 में मैं डेढ़ महीने की थी, तभी मेरी मां मुझे छोड़कर कहीं चली गई। कुछ बड़ी होने पर दादी ने बताया कि मेरी मां की मौत मेरे पैदा होने के बाद ही हो गई थी। अभी तीन महीने पहले अचानक मेरी मां की एक सहेली मिली और बोली तुम्हारी मां तो मुझसे कुछ अरसे पहले ही मिली थी। 30 साल की हो गई तब पता चला कि मेरी मां जिंदा है। ...और मैं अपनी मां की तलाश में निकल पड़ी...।
मां को एक बार देख लेने भर की उम्मीद में प्रियंका के चेहरे पर कुछ चमक आती ही थी, कि कमबख्त रुंधा गला आंखें नम कर देता। ३० साल तक बगैर मां के जीना मुश्किल था, लेकिन जिंदा होने की खबर सुनने के बाद मां से मिलने की बैचेनी उससे कहीं ज्यादा थी। आंखों में मां से मिलने की उम्मीदें थीं तो जज्बे ने भी मानो उसका दामन थाम लिया था। कुछ रुक कर बोल पड़ी क्रपहले छोटी थी तो कुछ पता न था, अब मैं दो बच्चों की मां हूं तो पता है कि मां होने का मतलब क्या होता है।
पिता भी बचपन में छोड़ गए दादी ने पाला : बोली, अब्दुल्लापुर बस्ती में रहता था मेरा परिवार। बाद में शिमलापुरी इलाके में जाकर रहने लगे। मां तो पहले ही छोड़ गई थी, पिता भी कुछ दिनों बाद ही छोड़ गए। दादी (कमला देवी) ने ही पाला और शुरू से मैं उन्हीं को अपनी मां समझती थी। शादी दर्शन नगर पटियाला में हुई अब अपने परिवार के साथ वहीं रहती हूं।
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