
पचनया (16) चंबल नदी के बार्डर पर बसे रघुनाथपुर गांव का रहने वाला था। हादसे की खबर मिलते ही वह अन्य गांव वालों के साथ चंबल नदी के तट पर उस जगह पहुंच गया, जहां विमान का मलबा बिखरा हुआ था। गांववालों ने जहां हादसे की जानकारी पुलिस को दी, वहीं पचनया ने वायुसेना अफसरों को बचाने के लिए बचाव दल का इंतजार नहीं किया और अन्य गांव वालों के साथ चंबल नदी में छलांग लगा दी। लेकिन इस जल्दबाजी में वह यह भूल गया कि चंबल नदी एक-दो नहीं, 500 से 700 घड़ियाल और मगरमच्छों का घर है। नदी में कूदे बाकी गांव वाले तो सुरक्षित निकल आए, लेकिन पचनया का पता नहीं चल सका। पचनया घड़ियालों का शिकार बन गया था। नदी के तेज बहाव के चलते उसकी तलाश भी नहीं जा सकी।
घड़ियालों का आश्रय स्थल है चंबल
चंबल नदी मुख्यतः घड़ियालों और मगरमच्छ का मुख्य आश्रय स्थल है। इस सेंचुरी में तकरीबन 500 से 700 घड़ियाल हैं। श्योपुर से लेकर अटेर तक सेंचुरी का इलाका फैला हुआ है। वहीं मुरैना के देवरी में इनका प्रजनन केंद्र भी बनाया गया है। बारिश में जब चंबल नदी उफान पर होती है, तो खास एहतियात बरती जाती है। घड़ियालों और मगरमच्छ द्वारा इंसानों का शिकार करने की घटनाएं भी अक्सर सुनने में आती हैं।
राहत कार्यों में भी आई थीं मुश्किलें-
शुक्रवार को वायुसेना के अफसरों को भी चंबल नदी पार कर घटनास्थल पर पहुंचने में खासी दिक्कतें हुई थीं। स्थानीय प्रशासन के अलावा वायुसेना के अफसरों को भी चंबल में घड़ियाल और मगरमच्छ होने की जानकारी थी।
एक अन्य युवक भी बहा
बताया जा रहा है कि विमान को देखने आया एक अन्य युवक भी चंबल नदी में बह गया। कल्ला (20) पुत्र सियाराम राव निवासी पिपरानी चंबल नदी पार कर रहा था। नदी के तेज बहाव में कल्ला का संतुलन बिगड़ने से वह नदी में गिर गया। तलाश जारी है कि अभी तक उसकी लाश नहीं मिल सकी है। स्थानीय लोगों के मुताबिक, कल्ला की लाश भी मिलना मुश्किल है क्योंकि उसे भी घड़ियालों ने शिकार बना लिया होगा।
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