एक अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार थी, जिसने इंडिया शाइनिंग प्रोग्राम के तहत अपने कामों का तगड़ा प्रचार-प्रसार किया था। दूसरी डॉ. मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार है, जो भारत निर्माण कार्यक्रम के तहत कुछ ऐसी ही कवायद में जुटी है। अटल की तो बात नहीं बन पाई थी, अब जानकार कह रहे हैं कि मनमोहन भी मतदाताओं के मन को नहीं लुभा पाएंगे। यह आभास खुद कांग्रेस को भी हो गया है।
दरअसल, यह आशंका इसलिए उठी है कि भारत निर्माण कार्यक्रम के तहत हाल में जारी किए गए विज्ञापनों में भारत के विकास की बात तो कही गई है, लेकिन यूपीए का ही उल्लेख नहीं है। यानी कहीं नहीं कहा गया कि यह विकास यूपीए के कारण हुआ है। साफ है, सरकार को भी भय है कि भारत निर्माण के दावे उल्टे भी पड़ सकते हैं।
पहले कुछ, अभी कुछ
बीते दिनों पांच विधानसभाओं के चुनाव परिणाम आए थे। कांग्रेस को मुंह की खाना पड़ी थी। इन परिणामों से पहले जो विज्ञापन भारत निर्माण के तहत जारी किए गए थे, उनमें बताया गया था कि पूरा विकास यूपीए ने कराया है। वहीं अब दावे से पलटना पड़ा है।
यह सवाल कांग्रेस में भी उठ चुका है कि क्या भारत निर्माण भी इंडिया शायनिंग की राह पर जा रहा है। यही कारण है कि मनीष तिवारी, कपिल सिब्बल और आनंद शर्मा जैसे दिग्गज मंत्रियों को सफाई देना पड़ रही है। बकौल तिवारी, हमारा कैम्पेन इंडिया शायनिंग की तरह नहीं है। यूपीए की कहानी विकास के प्रमाणों और आंकड़ों पर आधारित है।
यूपीए ने भारत निर्माण पर करीब 450 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। वहीं एनडीए का बजट 200 करोड़ रुपए का था।
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