मंगलवार, फ़रवरी 18, 2014

राजीव गांधी के हत्यारों को नहीं होगी फांसी, सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद में बदली सजा



नई दिल्ली पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों को फांसी नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने राजीव गांधी हत्याकांड में मौत की सजा पाए तीन मुजरिमों संथन, मुरुगन और पेरारिवलन की सजा को आजीवन कैद में बदल दिया है। तीनों ने दया याचिकाओं के निबटारे में देरी के आधार पर मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील करने का अनुरोध किया था। सुप्रीम कोर्ट ने इसका विरोध कर रही केंद्र सरकार के तमाम तर्कों को खारिज करते हुए उन्हें यह राहत दे दी। उधर, सूत्रों के मुताबिक सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटिशन दाखिल कर सकती है।

चीफ जस्टिस पी. सदाशिवम की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने यह अहम फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने सजा को कम करते समय दोषियों की दया याचिका पर निर्णय लेने में केंद्र सरकार की ओर से हुई 11 साल की देरी का जिक्र किया। कोर्ट ने कहा, 'हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह दया याचिकाओं पर निर्णय लेने के लिए राष्ट्रपति को उचित समय में सलाह दे। हमें भरोसा है कि दया याचिका पर निर्णय लेने में इस समय जितनी देरी हो रही है, इन याचिकाओं पर उससे कहीं जल्दी फैसला लिया जा सकता है।'

इस बेंच ने तीनों की अपील पर चार फरवरी को सुनवाई पूरी की थी। केंद्र सरकार ने इन तीनों दोषियों की याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि दया याचिकाओं के निबटारे में देरी के आधार पर मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील करने का यह उचित मामला नहीं है।

क्या थी केंद्र की दलीलः सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल जी. ई. वाहनवती ने दलील दी थी कि राष्ट्रपति को दया याचिका के निपटारे के लिए कोई समय सीमा तय नहीं है। ऐसे में इसे देरी नहीं कहा जा सकता। इस लिहाज से मामले में कोर्ट का 21 जनवरी का वह फैसला लागू नहीं होता जिसमें 15 लोगों की फांसी को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया था। वाहनवती ने माना था कि दया याचिका के निपटारे में देरी हुई है, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि यह देरी गैरवाजिब नहीं है। वाहनवती ने कहा था कि 21 जनवरी का फैसला इस मामले में लागू नहीं होता क्योंकि जेल में बंद इन मुजरिमों को किसी तरह की प्रताड़ना या फिर मानसिक यातना नहीं झेलनी पड़ी।

वाहनवती ने दलील दी थी कि सुप्रीम कोर्ट से अर्जी खारिज होने के बाद इन्होंने राज्यपाल के सामने दया याचिका दायर की थी, जहां से अर्जी 2000 में खारिज हो गई। इसके बाद इनकी अर्जी गृह मंत्रालय के सामने 26 अप्रैल, 2000 को भेजी गई। 2004 तक यह मंत्रालय के सामने रही फिर 2005 में राष्ट्रपति के पास इनकी फाइल गई। 2011 में राष्ट्रपति ने दया याचिका खारिज कर दी। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि याचिका के निपटारे में काफी देरी हुई है। लेकिन कोर्ट ने केंद्र की सारी दलीलों को खारिज कर दिया।

क्या थी बचाव पक्ष की दलीलः मुजरिमों की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट राम जेठमलानी ने दलील दी थी कि दया याचिका के निपटारे में 11 साल का वक्त लगा। इस दौरान मुजरिम 18 साल जेल में बंद रहे हैं। इसलिए याचिका के निपटारे में देरी के आधार पर इनकी फांसी को उम्रकैद में बदला जा सकता है। केंद्र की दलीलों का विरोध करते हुए कहा गया था कि दया याचिकाओं के निबटारे में अत्यधिक देरी होने के कारण उन्हें काफी तकलीफ सहनी पड़ी है। इसलिए मौत की सजा उम्र कैद में तब्दील होनी चाहिए।

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