लखनऊ। एक ही परिवार के दो 'गांधी' अगल-बगल की अमेठी और सुलतानपुर सीट से प्रत्याशी हैं। दोनों के लिए ही सुखद संयोग है कि उनके मुख्य विपक्षी के पास प्रभावी चुनौती देने वाले उम्मीदवार नहीं हैं।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय महासचिव वरुण गांधी के सुलतानपुर से चुनाव लड़ने के निर्णय ने चुनावी परिदृश्य को न केवल दिलचस्प बना दिया है, बल्कि इसी संभावना को हवा देकर सुलतानपुर के कांग्रेस के सिटिंग लोकसभा सदस्य डा. संजय सिंह ने नेतृत्व को इस तरह दबाव में लिया कि अनिच्छुक होते हुए भी उन्हें असम से राच्य सभा में भेज दिया।
जाहिर है संजय सिंह अब सुलतानपुर से पार्टी उम्मीदवार नहीं होंगे तो क्या ऐसे में उनकी पत्नी अमीता सिंह को कांग्रेस टिकट देगी, यह देखना दिलचस्प होगा। सूत्रों का कहना है कि अरसे से कांग्रेस में उपेक्षित चल रहे संजय सिंह अपने राजनीतिक 'मेंटर' से चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे। उनके समर्थकों ने ऐसे संकेत देने शुरू कर दिए थे कि ऐसी नौबत आने को हुई तो वह भाजपा के टिकट पर अमेठी में राहुल गांधी को चुनौती देना श्रेयस्कर समझेंगे। यह ट्रिक काम कर गई।
कैप्टन सतीश शर्मा को 2004 में सुलतानपुर से लड़ाने का प्रयोग फेल हो चुका है और स्थानीय कांग्रेस नेताओं में कोई ऐसा नजर नहीं आता, जो भाजपा के संभावित प्रत्याशी वरुण गांधी को चुनौती दे सके। निगाहें इस पर होंगी कि अगर संजय सिंह किसी भी तरह वरुण गांधी से मुकाबले को तैयार नहीं हुए तो क्या इसके लिए वह अपनी पत्नी को तैयार करेंगे।
अमेठी में यही स्थिति भाजपा की है। स्थानीय भाजपा नेताओं में कांग्रेस उपाध्यक्ष सांसद राहुल गांधी को प्रभावशाली चुनौती देने वाला कोई नहीं है। आम आदमी पार्टी (आप) के उम्मीदवार कुमार विश्वास ने रही-सही कसर पूरी करते हुए गैर कांग्रेस स्पेस पर अधिकार जमाने की मुहिम छेड़ रखी है और ऐसे में जितनी देर से भाजपा प्रत्याशी आएगा, उसके लिए पहले से ही मुश्किल लक्ष्य और मुश्किल होता जाएगा। सपा ने अमेठी में प्रत्याशी नहीं उतारा है। अलबत्ता बसपा प्रत्याशी की जद्दोजहद जारी है।
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