शुक्रवार, फ़रवरी 07, 2014

जेल में बंद नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक नहीं

नई दिल्ली,। आपराधिक मामलों में जेल में बंद नेताओं के चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाए जाने की मांग को लेकर दायर याचिका को दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश एनवी रामना व न्यायाधीश मनमोहन की खंडपीठ ने गुरुवार को अपने फैसले में कहा कि विचाराधीन कैदी व सजायाफ्ता कैदी के अधिकारों को एक समान नहीं माना जा सकता है।
खंडपीठ ने कहा कि जेल में बंद या पुलिस हिरासत में रह रहे व्यक्ति को सिर्फ इस आधार पर चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता है कि वह राजनीति में अपराध फैलाएगा। यदि ऐसा किया गया तो कोई भी राजनीतिज्ञ या सत्ता में आई पार्टी किसी के खिलाफ भी केस दायर करवा देगी ताकि वह चुनाव न लड़ पाए। हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हमारी न्यायिक व्यवस्था यह मानती है कि जब तक अपराध साबित ना हो जाए तब तक आरोपी को निर्दोष माना जाता है। ऐसे में यह नहीं माना जा सकता है कि विचाराधीन कैदी को चुनाव लड़ने के लिहाज से दोषी नहीं माना जा सकता है। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 2013 में किए गए बदलाव संसद के अधिकार क्षेत्र में थे।
उल्लेखनीय है कि अधिवक्ता एमएल शर्मा की ओर से दायर याचिका में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में 29 सितंबर, 2013 को किए गए बदलाव को चुनौती दी गई थी। इस अधिनियम में किए गए बदलाव के तहत जेल में बंद नेताओं को चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी गई थी। याचिका में कहा गया था कि संसद द्वारा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में किए गए बदलाव असंवैधानिक हैं। ऐसा सिर्फ राजनीतिज्ञों को लाभ पहुंचाने के इरादे से किया गया है।

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