रविवार, फ़रवरी 23, 2014

युवा करेंगे 350 सीटों का फैसला

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के लिए हर राजनीतिक दल की नजर युवा मतदाताओं पर यूं ही नहीं टिकी है। लगभग 350 सीटों पर युवा मतदाताओं की संख्या किसी भी उम्मीदवार को जिताने या हराने तक पहुंच गई है। यही नए मतदाता इन सीटों पर खड़े होने वाले प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करेंगे। इस बार सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के हर संसदीय क्षेत्र में सवा दो लाख से ज्यादा नए मतदाता वोट करेंगे। ये ऐसे मतदाता हैं, जो पहली बार वोट डालेंगे और 25 वर्ष की आयु से कम होंगे। जाहिर है कि अगर युवाओं के लिए 35 वर्ष की आयुसीमा को मापदंड बनाया गया, तो असर ज्यादा गहरा हो सकता है।
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और दिल्ली का हालिया चुनावी ट्रेंड मौसमी नहीं था। आयोग के नए आंकड़ों ने स्पष्ट कर दिया है कि युवा ही आगामी लोकसभा की तकदीर लिखेंगे। संप्रग की पिछली सरकार को लगभग 12 करोड़ मतदाताओं ने जिताया था। पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार लगभग सवा दस करोड़ नए मतदाता सूची में जुड़ गए हैं। इनमें से 2.31 करोड़ ने अभी-अभी 18 वर्ष की दहलीज पार की है। शेष लगभग आठ करोड़ नए मतदाताओं में अधिकांश वह हैं जो पिछले चुनाव तक 15-19 की आयु के थे। यानी वह भी पहली बार लोकसभा के लिए मतदान करेंगे।
उत्तर प्रदेश में संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी सरीखे नेताओं ने भले ही करीब तीन लाख के अंतर से जीत हासिल की हो, लेकिन नई परिस्थिति में प्रदेश के हर उम्मीदवार को औसतन 2,29,311 नए वोटरों का सामना करना पड़ेगा। ध्यान रहे कि 80 सीटों में लगभग आधा दर्जन सांसदों को छोड़ दिया जाए, तो बाकी की जीत का अंतर दो लाख से नीचे ही रहा था।
दूसरे सबसे बड़े राज्य महाराष्ट्र, 40 सीटों वाले बिहार और राजस्थान में भी औसतन दो लाख नए मतदाता उम्मीदवारों का भविष्य तय करेंगे। तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में इनकी संख्या ढाई से तीन लाख के बीच है। गौरतलब है कि इन बड़े और महत्वपूर्ण राज्यों में जहां कई जगह भाजपा और कांग्रेस की सीधी टक्कर है, वहीं कुछ स्थानों पर क्षेत्रीय दलों का दबदबा है।
कांग्रेस और भाजपा युवा शक्ति को अपने साथ जोड़ने में लगी हैं। पिछले दिनों भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का पूरा ध्यान इन युवाओं पर ही रहा है। दोनों दलों ने चुनावी मैदान में भी युवाओं को उतारने की रणनीति बना ली है। 18-19 आयु वर्ग के मतदाताओं का रुख खासकर छोटे राज्यों में अहम साबित हो सकता है।
नए आंकड़ों के अनुसार झारखंड के कुल मतदाताओं में इनका हिस्सा नौ फीसद है। दादर और नगर हवेली, दमन दीव में ये 9.9 व 8.6 फीसद हैं, तो उत्तर-पूर्व के सात राज्यों में इनका प्रतिनिधित्व औसतन पांच फीसद है। ध्यान रहे कि उत्तर पूर्व में 25 संसदीय सीट हैं।
हर संसदीय क्षेत्र में औसतन बढ़े मतदाता
उत्तर प्रदेश: 2,29311
महाराष्ट्र: (48) 197072
पश्चिम बंगाल: (42) 2,37519
बिहार (40) 1,90080
तमिलनाडु (39) 3,11082
पंजाब: (13) 1,72988
राजस्थान (25) 2,19981
हरियाणा (10) 3,50671
दिल्ली (7) 1,37662
कर्नाटक (28) 1,03704
मध्य प्रदेश (29) 3,26188
घोषणापत्र में हवाई किले नहीं बना पाएंगे दल
नई दिल्ली। अब राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र में मुफ्त सामान बांटने का वादा नहीं कर पाएंगे और न ही मतदाताओं को हवाई सपने दिखाकर लुभा पाएंगे। अब ऐसा करने से पहले उन्हें अपने वादों का आधार और उन्हें पूरा करने के आर्थिक स्रोतों का खुलासा भी करना होगा। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मद्देनजर चुनाव आयोग ने चुनाव पूर्व सभी दलों को बराबर का मौका देने के लिए यह कदम उठाया है।
चुनाव आयोग ने अपने नए दिशा-निर्देशों में राजनीतिक दलों से कहा है कि वे मतदाताओं को मुफ्त में सामान बांटने जैसे वादे न करें और न ही लुभावने वादे कर मतदाताओं को रिझाने का माहौल बनाएं। आयोग ने कहा कि पार्टियां ऐसे वादे ही करें जिन्हें वे पूरा करने में सक्षम हों। सुप्रीम कोर्ट ने 5 जुलाई, 2013 को कहा था कि चुनाव घोषणापत्र में वादे करना कानूनन गलत तो नहीं है, लेकिन मुफ्त सामान वितरण के वादे लोगों को रुख बनाने के दौरान प्रभावित जरूर करते हैं। बड़े पैमाने पर यह स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव की जड़ों को हिलाता है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को चुनाव से पहले सभी पार्टियों के लिए बराबर का मौका उपलब्ध कराने की व्यवस्था करने को कहा था। साथ ही कहा था कि आयोग चुनाव प्रक्रिया की शुचिता सुनिश्चित करे।
आयोग ने 7 फरवरी, 2014 को राजनीतिक दलों के साथ हुई बैठक में आए सुझावों को दिशा-निर्देशों में जोड़ते हुए आचार संहिता में शामिल कर लिया है। आयोग ने कहा है कि घोषणापत्र में ऐसा कुछ भी शामिल न किया जाए, जो संविधान के आदर्शो और सिद्धांतों के खिलाफ हो। साथ ही घोषणापत्र आचार संहिता की मूल आत्मा के मुताबिक होना चाहिए। पार्टियों को ऐसे वादे करने से बचना चाहिए जो चुनाव प्रक्रिया की शुचिता को दूषित करते हों या मतदाताओं को प्रभावित करते हों।

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