शुक्रवार, दिसंबर 06, 2013

अयोध्या: 1992 की कहानी,

नई दिल्ली। 6 दिसंबर, 1992 का दिन भारत के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गया। इसी दिन अयोध्या में बाबरी ढांचा ढहा दिया गया। नवंबर 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने बाबरी ढांचे के पास शिलान्यास की मंजूरी देकर इस विवाद को और हवा दे दी थी। वीएचपी के आंदोलन ने इस विवाद को चरम पर पहुंचाया। ये वो दौर था जब देश की फिजा में तनाव का माहौल घुलने लगा था।
आईबीएन 7 के एक्जीक्यूटिव एडिटर मृत्युंजय कुमार झा उस दौर में पत्रकार के तौर पर काम कर रहे थे। मृत्युंजय ने उस दौर में राजनीतिक और सामाजिक माहौल को अच्छी तरह परखा और अपने ब्लॉग में पूरी घटना को लोगों तक पहुंचाया। क्या लिखा है मृत्युंजय कुमार झा ने अपने ब्लॉग में पढ़ें-
"1990 में बतौर पत्रकार पहली बार अयोध्या गया था। मुलायम सिंह उस वक्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। एक साल पहले जून 1989 में हिमाचल प्रदेश के पालनपुर में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में राम मंदिर बनाने का प्रस्ताव पारित किया गया। इसे रामजन्म भूमि आंदोलन का नाम दिया गया।
दो महीने बाद 25 सितंबर 1990 को लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अपनी यात्रा की शुरुआत की। एयरकंडीशंड बस को रथ में तब्दील किया गया और आडवाणी उसके सारथी बने। बीजेपी की योजना थी कि आडवाणी का रथ 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में प्रवेश करे, जिस दिन विश्व हिंदू परिषद ने कारसेवा का एलान किया था। केंद्र में जनता दल की सरकार थी, जिसे बीजेपी का समर्थन हासिल था। विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के प्रधानमंत्री थे। कार सेवा के आह्वान के मद्देनजर देश में एक तनाव का माहौल बनता जा रहा था।
अक्टूबर के पहले सप्ताह में वीपी सिंह ने अयोध्या मसले के सुलाझाने की पहल की और आरएसएस के करीबी और रामनाथ गोयनका के सलाहकार स्वामीनाथन गुरुमूर्ति को बातचीत के लिए दिल्ली बुलाया, क्योंकि किसी भी समाधान के लिए आरएसएस की सहमति आवश्यक थी। उस वक्त सू्त्रों के मुताबिक गुरुमूर्ति और विश्वनाथ प्रताप सिंह के बीच बैठकों के कई दौर चले।
सूत्रों के मुताबिक तय यह हुआ कि केंद्र सरकार एक अध्यादेश के जरिए बाबरी मस्जिद के आसपास की सारी जमीन अधिग्रहित कर लेगी। गुरुमूर्ति के मुताबिक इस जमीन का एक बड़ा हिस्सा विश्व हिंदू परिषद के एक ट्रस्ट को दे दिया जाएगा। रही बात बाबरी मस्जिद की, तो उसे सुप्रीम कोर्ट को भेजा जाएगा और फिर यह कोर्ट तय करेगा कि वहां राम मंदिर था या नहीं। अगर राम मंदिर वहीं था तब वो जमीन हिंदुओं को सौंप दी जाएगी।
जाहिर है सरकार के इस कदम को बीजेपी नेताओं का समर्थन हासिल था। जब मुस्लिम नेताओं को इसकी भनक लगी, तब वो सभी प्रधानमंत्री विश्वनाथ सिंह से मिलने पहुंचे। ऑल इंडिया बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी के मुताबिक विश्वनाथ सिंह ने मुस्लिम नेताओं को भरोसा दिलाया कोई ऐसी बात नहीं है और कोई फैसला लेने से पहले उनसे विचार-विमर्श जरूर किया जाएगा। लेकिन 18 अक्टूबर 1990 की रात विश्वनाथ सिंह ने अध्यादेश लाने का मन बना लिया जो अगले दिन ही जारी हो गया। मुस्लिम नेताओं को लगा कि उनके साथ धोखा किया गया है। उन्होंने जमकर इस अध्यादेश का विरोध किया। बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के मुस्लिम नेता एक बार फिर विश्वनाथ सिंह से मिलने पहुंचे। जिलानी के मुताबिक वीपी सिंह ने उनसे कहा कि आप लोग काफी नाराज हैं, मैं आप लोगों की नाराजगी बर्दाश्त नहीं कर सकता।
अब वीपी सिंह के दिमाग में दूसरे विचार आ रहे थे। वैसे भी विश्वनाथ सिंह इस अध्यादेश को लेकर उधेड़बुन में थे। केंद्र सरकार ने पहले अध्यादेश को निरस्त करने के लिए दूसरा अध्यादेश निकाला। अयोध्या का मामला एक बार फिर लटक गया। गुरुमूर्ति के मुताबिक उन्होंने वीपी सिंह से कहा कि आपने देश का बहुत नुकसान किया है। वीपी सिंह खामोश रहे। दोनों फिर कभी नहीं मिले। इसी दौरान लालकृष्ण आडवाणी के रथ को बिहार में रोक लिया गया और लालू यादव ने उन्हें गिरफ्तार करवा दिया। सियासी अस्थिरता के बीच अयोध्या का मामला सुलग रहा था। मुलायम सिंह की सरकार ने तय कर लिया था कि किसी भी हाल में कारसेवा नहीं करने दी जाएगी। 30 अक्टूबर के मद्देनजर अयोध्या में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई थी। लेकिन विश्व हिंदू परिषद, आरएसएस और बीजेपी का कैडर इसे सफल बनाने के लिए जी जान से जुटा था।
विश्व हिंदू परिषद का दावा था कि देश के कोने कोने से 5 लाख से भी ज्यादा कारसेवक अयोध्या में कारसेवा के लिए मौजूद रहेंगे। हजारों लोग सुरक्षा व्यवस्था को भेदकर 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचने में कामयाब रहे। जब एक जत्था बाबरी मस्जिद की तरफ बढ़ा तब पुलिस को लाठी भांजनी पड़ी, लेकिन कारसेवकों का हुजूम बढ़ता रहा। करीब 100 कारसेवक बाबरी मस्जिद के गुबंद पर चढ़ने में सफल हो गए। उनके हाथों में फावड़े और दूसरे औजार थे। अब पुलिस के पास फायरिंग के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं था। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 15 लोग मारे गए थे, जबकि विश्व हिंदू परिषद का कहना था कि 50 से ज्यादा लोग मारे गए। विश्व हिंदू परिषद और बीजेपी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का नाम मौलाना मुलायम रख दिया।
नंवबर 1990 में बीजेपी ने वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई। बाद में कांग्रेस के समर्थन पर चंद्रशेखर सिंह की सरकार बनी। 30 अक्टूबर 1990 की घटना ने राम जन्मभूमि आंदोलन को और मजबूत बना दिया साथ ही राज्य में बीजेपी को भी स्थापित कर दिया। 1991 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 221 सीटें मिलीं और कल्याण सिंह राज्य के मुख्यमंत्री बने। करीब साल भर बाद 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरा दी गई और कल्याण सिंह की सरकार बर्खास्त कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।"

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