रविवार, मई 22, 2011

भयंकर अकाल और मेढ़क

बच्चों की कहनी
काफी पहले की बात है। एक बार धरती पर तीन वर्षों तक वर्षा नहीं हुई। जिससे भयंकर अकाल पड़ा। जिससे सभी तरफ त्रिही-त्रिही मच गई । मेढ़क को भी अपने तालाब को सूखता कर चिंता होने लगी,उसने सोचा, अगर ऐसा ही भूखा रहा तो वह मर जाएगा। मेढ़क ने सोचा कि इस अकाल के बारे में स्वर्ग जाकर वहां के राजा को बताया जाए। हिम्मत जुठा कर मेंढक अकेला ही स्वर्ग की ओर चल पड़ा। रास्ते में उसे मधुमक्खियों का एक झुंड मिला। मक्खियों के पूछने पर उसने बताया कि भूखे मरने से अच्छा है कि कुछ किया जाए। सूखे के कारण मक्खियों का भी हाल अच्छा नहीं था। फूल ही नहीं उगरहे थे तो उन्हें शहद कहां से मिलता। वे भी मेंढक के साथ चल दीं।

आगे जाने पर उन्हें एक मुर्गा मिला। मुर्गा बहुत उदास था। जब फसल ही नहीं हुई, तो उसे दाने कहां से मिलते। उसे खाने को कीड़े भी नहीं मिल रहे थे। इसलिए मुर्गा भी उनके साथ चल दिया। अभी वे सब थोड़ा ही आगे गए थे कि एक खूंखार शेर मिल गया। वह भी बहुत दुखी था। उसे खाने को जानवर नहीं मिल रहे थे। उनकी बातें सुन शेर भी उनके साथ हो लिया। कई दिनों तक चलने के बाद वे स्वर्ग में पहुंचे। मेंढक ने अपने सभी साथियों को राजा के महल के बाहर ही रुकने को कहा। उसने कहा कि पहले वह भीतर जाकर देख आए कि राजा कहां है। मेंढक उछलता हुआ महल के भीतर चला गया। कई कमरों में से होता हुआ वह राजा तक पहुंच ही गया। राजा अपने कमरे में बैठा परियों के साथ बातें कर रहा था। मेंढक को क्रोध आ गया। उसने लम्बी छलांग लगाई और उनके बीच पहुंच गया। परियां एकदम चुप हो गईं। राजा को एक छोटे से मेंढक की करतूत देख गुस्सा आ गया।

‘पागल जीव! तुमने हमारे बीच आने का साहस कैसे किया?’ राजा चिल्लाया। परंतु मेंढक बिलकुल नहीं डरा। उसे तो धरती पर भी भूख से मरना था। जब मौत साफ दिखाई दे तो हर कोई निडर हो जाता है।

राजा फिर चीखा। पहरेदार भागे आए ताकि मेंढक को पकड़ कर महल से बाहर निकाल दें। मगर इधर-उधर उछलता मेंढक उनकी पकड़ में नहीं आ रहा था। मेंढक ने मधुमक्खियों को आवाज दी। वे सब भी अंदर आ गईं। वे सब पहरेदारों के चेहरों पर डंक मारने लगीं। उनसे बचने के लिए सभी पहरेदार भाग गए।

राजा हैरान था। तब उसने तूफान के देवता को बुलाया। पर मुर्गे ने शोर मचाया और पंख फड़फड़ा कर उसे भी भगा दिया। तब राजा ने अपने कुत्तों को बुलाया। उनके लिए भूखा खूंखार शेर पहले से ही तैयार बैठा था। अब राजा ने डर कर मेंढक की ओर देखा। मेंढक ने कहा, ‘महाराज! हम तो आपके पास प्रार्थना करने आए थे। धरती पर अकाल पड़ा हुआ है। हमें वर्षा चाहिए।’राजा ने उससे पीछा छुड़ाने के लिए कहा, ‘अच्छा चाचा! वर्षा को भेज देता हूं।’ जब वे सब साथी धरती पर वापस आए तो वर्षा भी उनके साथ थी। इसलिए वियतनाम में मेंढक को ‘स्वर्ग का चाचा’ कह कर पुकारा जाता है। लोगों को जब मेंढक की आवाज सुनाई देती है वे कहते हैं, ‘चाचा आ गया तो वर्षा भी आती होगी।’



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