नई दिल्ली। 'बहती हवा सा था वो, उड़ती पतंग सा था वो, कहां गया उसे ढूंढो' फिल्म थ्री इडियट्स का यह गाना 18 नवंबर के बाद से शायद हर भारतीय के दिल में गूंजेगा, आखिर करोड़ों नजरों के सामने से वो नाम अलविदा कह देगा जिसकी हस्ती को ना कभी सरहदें रोक पाईं और ना कोई आलोचना। वेस्टइंडीज के खिलाफ दूसरे टेस्ट के आखिरी दिन (18 नवंबर) को जब क्रिकेट का भगवान आखिरी बार पवेलियन की ओर बढ़ेगा तो दुनिया भर में करोड़ों आंखों का भीगना तय है, क्योंकि वह एक ऐसा नाम थे जिन्होंने पूरी दुनिया को महज एक उफफफफ के जरिए जोड़ दिया। वो उफफफफ जो अब कभी शायद ही सुनने को मिले। उनके आउट होने पर बाजारों में, घरों में, दफ्तरों में एक गूंज में जो उफफफफ सुनाई देती थी, अब वो अलविदा कहने वाली है। मुझे याद है जब हम बचपन में टीवी या स्टेडियम पर मैच देखते थे तो घर के बड़े लोग भारतीय टीम की तरफ देखकर कहते थे कि अरे, यह भी कोई खिलाड़ी हैं, गावस्कर, विश्वनाथ, कपिल, अमरनाथ वगैरा-वगैरा का कोई जोड़ ही नहीं था। आखिरकार हमारे पास एक ऐसा नाम अब मौजूद है जिसके बारे में हम सालों बाद उस दौर के बच्चों को टीवी देखते हुए कह सकेंगे कि यह भी कोई शॉट है, शॉट तो सचिन मारता था..
अगर आपने सचिन के उस दौर का ताजा हाल देखा है जब दुनिया का हर गेंदबाज मास्टर ब्लास्टर को हर गेंद करने से पहले मैदान में खड़े फील्डरों को निहारता था कि सब सही जगह खड़े हैं या नहीं। उसके बावजूद कभी अपनी क्लासिक स्ट्रेट ड्राइव तो कभी पैडल स्वीप के जरिए वह गेंद को फील्डरों के बीच से भेद देते थे। शारजाह में सचिन ने कुछ ऐसे रंग जमाया था कि आज भी आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी यह नहीं भूले हैं कि उनके सर्वोच्च गेंदबाज [शेन वार्न] को कैसे मास्टर ने रेगिस्तान पर दिन में तारे दिखाए थे और रात में अजीब सपने। एक ऐसा खिलाड़ी जिसने कई बार अपनी टीम को विश्व कप के बेहद करीब आते और अंत में उस लम्हे से महरूम होते देखा, एक ऐसा स्टार जिसने विंबलडन जैसे टेनिस के मंच पर भी जाकर मीडिया और फैंस का ध्यान वहां के चैंपियन रोजर फेडरर से भी ज्यादा खींचा। सौम्य स्वभाव और विवाद से दूर रहने वाले इस खिलाड़ी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो जलवा बिखेरा उसकी हसरत पालते-पालते ना जाने कितने दिग्गज मैदान पर आए और कुछ तो उन्हीं के सामने रिटायर होकर उन्हीं के मैच में कमेंट्री करने लगे या फिर कुछ उन्हीं की टीम के कोच बन गए लेकिन बार-बार वह आलोचकों को जवाब देते हुए चीते की रफ्तार से मैदान की उस 22 गज की सूखी पट्टी पर रन लेते दिखे जिस पर उन्होंने तकरीबन 24 साल गुजार दिए। कहते हैं कि जिंदगी जीने के असल माएने वही समझ पाता है जिसको दर्द होता है या उसने दर्द झेला होता है, वैसे ही शायद अब करोड़ों भारतीय फैंस क्रिकेट को जी नहीं सकेंगे क्योंकि सचिन के शतक पर मचने वाली चीख पुकार से ज्यादा प्रभावित करने वाली होती थी वह एक उफफफफफफ जो उनके आउट होने पर सड़क पर खड़े ठेले से लेकर आपके बेडरूम और मिठाई की दुकान तक में सुनाई देती थी। खिलाड़ी अब भी आउट होंगे, खिलाड़ी अब भी शतक से चूकेंगे, अब भी खिलाड़ी इतिहास रचेंगे और जश्न मनाया जाएगा लेकिन करोड़ों फैंस द्वारा ली गई वह लंबी सांसें और एक विकेट गिरने पर निकलने वाली वह करोड़ों उफफ शायद अब उस भावना से सुनने को ना मिलें।
किसी ने सही कहा था कि 2012 में दुनिया खत्म हो जाएगी, धरती का तो पता नहीं लेकिन हां करोड़ों फैंस के लिए 2013 में क्रिकेट की दुनिया का अंत तो साल खत्म होते-होते दिख ही जाएगा, टेस्ट में मास्टर अभी कुछ दिन और खेलेंगे, आउट हुए तो आलोचनाएं भी झेलेंगे लेकिन यकीन मानिए, भारतीय क्रिकेट ने जो विश्व खेल जगत में एक छाप छोड़ी वह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सचिन के संन्यास के बाद, सफलताओं के बावजूद बैकफुट पर जरूर आती नजर आएगी, जिसे दोबारा चरम तक पहुंचाने का जिम्मा उन युवा खिलाड़ियों पर होगा जिनको उनके करियर के शुरुआत से ही बाहर करने की बात की जा रही है। खैर, सचिन ने जो वनडे के जरिए हमें दिया वह शायद ही हम कभी भूल पाएंगे। बस उम्मीद अब भी यही है कि वो एक उफफफफ।
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