नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मतदाताओं को का विकल्प उपलब्ध कराने संबंधी आदेश के राजधानी में सियासी दल बेचैन हो गए हैं। ऐसा माना जा रहा है कि मतदाताओं को यह विकल्प उपलब्ध करा देने से सत्ताधारी कांग्रेस को इसका सियासी फायदा मिल सकता है। जबकि भाजपा व आम आदमी पार्टी को इस विकल्प के कारण घाटा होने का खतरा है।
सियासी जानकारों की मानें, तो इसके तहत किसी भी प्रत्याशी के पक्ष में मतदान नहीं करने वाले मतदाताओं को यदि यह विकल्प हासिल नहीं होता, तो वे या तो मतदान में हिस्सा ही नहीं लेते अथवा सत्ताधारी दल के खिलाफ मतदान करते। ऐसी सूरत में भाजपा फायदे में रहती अथवा आम आदमी पार्टी को ये वोट मिल जाते। लेकिन ऐसे तमाम लोगों के वोट रिजेक्ट की सूची में शामिल हो जाने पर सत्ताधारी दल को राहत मिल सकती है।
जानकारों का कहना है कि दिल्ली में की सुविधा मिलने पर यूं तो बहुत बड़ी संख्या में लोग मतदान केंद्रों पर पहुंच सकते हैं। लेकिन माना यह जा रहा है कि आमतौर पर शहर का पढ़ा लिखा और युवा तबका इस अधिकार का प्रयोग ज्यादा बढ़-चढ़कर कर सकता है। भाजपा के रणनीतिकार यह मानकर चल रहे हैं कि गुजरात के मुख्यमंत्री व पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के नाम पर युवा दिल्ली में भी भाजपा के पक्ष में मतदान करेंगे। लेकिन में ज्यादा युवाओं के मत शामिल होना पार्टी के लिए घाटे का साबित हो सकता है।
दूसरी बात यह भी है कि शहरी मध्यमवर्गीय तबका ही भाजपा का समर्थक माना जाता है। यदि उसमें से भी बड़ी संख्या में लोग अधिकार का उपयोग करने में जुट गए, तो भी पार्टी को नुकसान होगा।
सियासी पंडितों की नजर में यही बात आम आदमी पार्टी पर भी लागू होती है। पहली बार चुनाव मैदान में उतर रही इस पार्टी का दावा है कि उसे दिल्ली के हर वर्ग का समर्थन हासिल है लेकिन हकीकत यही है कि अन्ना आंदोलन से उभरे इसके नेताओं को युवा पीढ़ी और पढ़े लिखे तबके से ज्यादा सहयोग मिल रहा है। लिहाजा इस पार्टी के लिए भी नुकसानदेह माना जा रहा है। दिल्ली में कांग्रेस के मतदाताओं में मुस्लिम, दलित, पुरबिया आदि की संख्या सबसे ज्यादा है। माना यह जा रहा है कि अधिकार का इस्तेमाल करने वाले लोग इन तबकों में भी हो सकते हैं, लेकिन अपेक्षाकृत इनकी संख्या कम होगी। ऐसे में पार्टी को अधिकार बहाल कर दिए जाने पर कुछ फायदा हो सकता है।
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