नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में व्यवस्था दी है कि मानसिक विकार किसी सूरत से भी तलाक का आधार नहीं माना जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि जब तक कि यह साबित न हो जाए कि मानसिक विकार वाले व्यक्ति के साथ जीवन व्यतीत करना दुश्वार है तब तक तलाक नहीं दिया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि हिंदु मैरिज एक्ट में इस तरह की दलील को नहीं माना गया है।
सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की पीठ में शामिल जस्टिस जीएस सिंघवी और जस्टिस वी गोपाला गोड़ा ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा जिसमें उन्होंने मानसिक विकार को तलाक के लिए आधारहीन माना था। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए यह आदेश दिया था। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि हाईकोर्ट ने इस संबंध में सभी सबूतों को बेहतर तरीके से जांचा और परखा है।यह आदेश कोर्ट ने उस याचिका के अंतर्गत दिया था जिसमें एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी को स्कीजोफरेनिया बीमारी से ग्रस्त बताते हुए तलाक की मांग की थी। कोर्ट ने इस संबंध में मेडिकल रिपोर्ट को खारिज कर दिया। कोर्ट का तर्क था कि हिंदु मैरिज एक्ट की धारा 13 [1], [3] इस आधार को पूरी तरह से खारिज करती है।
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