शनिवार, सितंबर 17, 2011

शांति का मूलमंत्र


सुख-शांति एक युगल शब्द है। दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। लगता है कि दोनों का आनंद साथ साथ ही मिलता है। लेकिन सावधान! ताजा अध्ययन यह कहते हैं कि अगर आप सुखी और साधन संपन्न हैं तो शांति की उम्मीद मत कीजिए। ये बात अलग है कि अगर आप शांत और प्रसन्न हैं तो सुख साधन भी आपके पास हों। न्यूजर्सी स्थित आध्यात्मिक संस्था नलाइनमेंट होम के डॉ रॉबर्ट पफ का कहना है कि सुख अक्सर अपने साथ तनाव और भय लेकर आता है।
तनाव यह कि वे सुविधाएं कैसे दिनों दिन बढ़े और भय उनके छिन जाने का। इसलिए शांति खोती जाती है। डॉ. पफ अपने आश्रमनुमा घर में लोगों को ध्यान सिखाते हैं और आध्यात्मिक शिक्षा देते हैं। अब तक उन्होंने करीब सात हजार लोगों को ध्यान की अलग अलग विधियां सिखाई हैं। ये विधियां उन लोगों की जरूरत, कामकाज और शैक्षणिक पारिवारिक पृष्ठभूमि के अनुसार थीं।
अपनी कक्षा में प्रवेश लेने से पहले वे ध्यानार्थी से चंद सवाल भी करते हैं। जो आवेदन पत्र में ही लिखे होते हैं। अगस्त में ही उन्होंने इन आवेदन पत्रों का फौरी तौर पर अध्ययन किया और पाया कि ध्यान करने वालों के सामने सुख और शांति की परिभाषाएं अलग-अलग करना जरूरी है। अब उन्होंने ऐसे अभ्यर्थियों को शांति के सूत्र पकड़ाने पर ज्यादा जोर देना शुरू किया है जो साधन संपन्न हैं। उनके लिए ध्यान में कुछ ऐसे संकेत और आगे के लिए ऐसे अभ्यास दिए जाते हैं, जिनमें व्यक्ति को वर्तमान में जीने की प्रेरणा मिले। डॉ. पफ ने माइंड एंड स्पिरिचुअल टीवी कार्यक्रम में कहा कि वर्तमान में जीने का स्वर्णिम सूत्र है जो काम आप कर रहे हैं उसके नतीजे के बारे में सोचे ही नहीं। जैसे ही काम करते करते हम उसके नतीजों के बारे में सोचने लगते हैं, एक विचित्र तरह के तनाव से घिर जाते हैं। जाहिर है कि सोचेंगे तो अच्छे ही नतीजों की उम्मीद करेंगे। और यह उम्मीद करते ही तनाव उत्पन्न होता है। डॉ. पफ ने कहा है कि सोचें या ना सोचें नतीजे तो आएंगे ही । फिर उन्हें लेकर परेशान क्यों हुआ जाए। ऐसे में ठीक तो यही होगा कि कर्म किए जाओ फल की इच्छा मत करो। 

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