कुदरत के करिश्मे के आगे चिकित्सक ही नहीं आम से लेकर खास तक सभी अचंभित हैं। क्या ऐसा संभव है कि मृत बच्चा दस साल तक मां के पेट में रहे, ये न तो सामान्य आदमी के लिए यकीन की बात है और न ही मेडिकल साइंस के लिए, लेकिन ऐसा हुआ है। एक महिला के गर्भधारण के दस साल बाद मृत शिशु सर्जनों की टीम ने आज आपरेशन कर बाहर निकाला। डाक्टर इस केस से खुद सन्न हैं। नई मंडी थाना कोतवाली के गांव नसीरपुर निवासी इस्तिखार की पत्नी नसीमा ने दस वर्ष पूर्व गर्भ धारण किया था। गर्भधारण के आठवें माह में जब महिला को दर्द हुआ तो चिकित्सकों की सलाह ली गई। चिकित्सकों ने एक्सरे व अल्ट्रासाउंड आदि कराया तो रिपोर्ट के आधार पर बच्चा उल्टा था और प्रसव समय से पूर्व वह पेट में ही मर गया था। तब से मृत शिशु पेट में रहा। चार दिन पूर्व महिला को अधिक दर्द हुआ तो परिजन उसे वशिष्ठ हास्पिटल में लेकर पहुंचे। डा. वागीश चंद शर्मा ने अल्ट्रासाउंड आदि कराया और पुराने अल्ट्रासाउंड भी देखे तो उन्होंने तीमारदारों को महिला के आपरेशन की सलाह दी और कहा कि इसके गर्भ में मृत शिशु है।
मंगलवार को डा. वागीश चंद शर्मा के नेतृत्व में वरिष्ठ सर्जन डा. केके अग्रवाल व डा. शांति खन्ना की टीम ने दो घंटे तक महिला की सर्जरी की और बच्चेदानी को बाहर निकाल दिया। इसके बाद चिकित्सकों ने बच्चेदानी से मृत शिशु के मांस के लोथड़े व हड्डियां निकाली।
नसीमा के पति इस्तिखार का कहना है कि दस वर्ष पूर्व उसने नसीमा को पहले जिला चिकित्सालय तथा बाद में प्राइवेट अस्पतालों में दिखाया था। करीब पांच हजार रुपए भी टेस्ट आदि में खर्च हो गए थे। दस साल पुरानी सभी एक्सरे व रिपोर्ट उनके पास उपलब्ध हैं। आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण तब वह अपनी पत्नी को घर लेकर आ गया था। उसके बाद से अब यह स्थिति आई और आपरेशन कराया।
वशिष्ठ हास्पिटल के डा. वागीश चन्द शर्मा का कहना है कि यह तो कुदरत का करिश्मा ही है। मेडिकल साइंस में तो हम इसे नहीं मानते और ऐसा संभव भी नहीं है। लेकिन दस साल पुरानी सभी रिपोर्ट देखने से वह भी अचरज में हैं। उन्होंने कहा कि आपरेशन सफल हो गया। महिला भी ठीक है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें