मंगलवार, सितंबर 06, 2011

शोभा से लें प्रेरणा


जिंदगी ने उसे दर्द दिया। जन्म लिया तो हाथ ही नहीं थे। बाबा (पिता) के माथे पर चिंता की लकीरें। बेटी बड़ी होती गई, चिंता की लकीरें गहराती गई। अपने बाबा के दर्द भरे आंसू को बेटी खूब समझ रही थी। कहा-बाबा! मत रो। हाथ नहीं तो क्या, मेरे पांव तो हैं। इस जिंदगी को उसने नियति की इच्छा मान हंसते-हंसते स्वीकार किया और जीवन के दर्द को पैरों से ही लगी रौंदने। वह ब्लैकबोर्ड पर हाथ नहीं, पैरों से लिखती है। उन बच्चों के लिए तो प्रेरणा ही प्रेरणा है, जिन्हें जीवन में कई थपेड़ों से अभी जूझना है। ये बच्चे अपनी टीचर को देख हौसला क्यों नहीं पालें। दास्तान शोभा की। रायगंज के राभापुकुर प्राथमिक विद्यालय की एक शिक्षिका। जन्म से ही निश्शक्त। उस पर परिवार की लचर आर्थिक स्थिति। पिता महिम मजूमदार सब्जी बेचकर परिवार का गुजारा कर रहे। एक निश्शक्त बेटी की जिंदगी की चिंता। पर, मेरे पांव तो हैं बेटी ने तो अपने बाबा की सारी चिंता ही दूर कर दी। वह एक बेटी ही नहीं, आदर्श शिक्षिका भी है। जिंदगी के दर्द को पैरों से कुचलने की ठान चुकी राधा ने बचपन से ही उसे हाथ बना लिया। पैर से लिखने की कोशिश की, सफल होती चली गई। एक के बाद एक। एमए तक की डिग्री ले ली। दर्द भरी जिंदगी में पैरों ने साथ दिया तो उम्मीदों के फूल-दर-फूल खिलने लगे। शोभा 2010 में स्कूल में शिक्षिका नियुक्त हो गई। सोमवार को एक शिक्षिका के रूप में उसके लिए पहला शिक्षक दिवस था। बच्चे अपनी टीचर के लिए उपहार लेकर आए थे। उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े। शोभा के स्कूल की सहकर्मी पिंकी दास कहती हैं, शोभा पर हमें गर्व है। उसके आगे कोई भी सम्मान बौना है। उसने जिंदगी की चुनौतियों पर विजय जो पाई है।

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