MOHD SALIM |
महाभारत में अब तक आपने पढ़ा...ये सब मुझे उस बालक के उदर से दिखाई दिया। मैं हर रोज फलाहार करता और घूमता रहता। इस प्रकार सौ वर्ष तक विचरते रहा। उसके बाद एक बार उस बालक ने सहसा उसने मुंह को खोला और मैं बाहर आ गया। देखा तो वह अमित तेजस्वी बालक ने प्रसन्न होकर कुछ मुस्कुराते हुए कहा मार्कण्डेय तुमने मेरे शरीर में विश्राम तो कर लिया है पर फिर भी तुम थके से जान पड़ते हो। तब मैंने उस बालक के पैर छूकर कहा भगवान मैंने आपके भीतर प्रवेश करके सारा संसार देख लिया है अब आगे...
मार्कण्डेय मुनि से कई धर्मोपदेश सुनने के बाद युधिष्ठिर बोले मैं बक और इन्द्र के समागम की बात सुनना चाहता हूं। तब उन्होंने कथा सुनाना शुरू किया। एक दिन की बात है देवराज इन्द्र अपनी प्रजा को देखने के लिए ऐरावत चढ़कर निकले। वे पूर्व दिशा में समुद्र के पस एक सुंदर और सुखद स्थान पर नीचे उतरे। वहां एक बहुत सुंदर आश्रम था। जहां बहुत से मृग और पक्षी दिखाई पड़ते थे। उस रमणीक आश्रम में इंद्र ने बक मुनि का दर्शन किए। बक भी देवराज इंद्र को देखकर मन में बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें बैठने को आसन देकर उनका स्वागत किया तब इंद्र ने बक से सवाल कि आपकी उम्र एक लाख वर्ष हो गई है। अभी भी आप स्वस्थ्य हैं। इसका कारण क्या है? और अपने अनुभव बताइए कि ज्यादा समय तक जीने वाले व्यक्ति को क्या-क्या दुख देखने पड़ते हैं। बक ने कहा- अप्रिय मनुष्यों के साथ रहना पड़ता है। प्रिय व्यक्तियों के मर जाने से उनके वियोग में जीवन बीताना पड़ता है। कभी-कभी दुष्ट मनुष्यों का साथ मिलता है। किसी भी चिरंजीवी के लिए इससे बढ़कर दुख क्या होगा? अपने सामने ही पत्नी और पुत्रों की मौत होती है। दोस्तों के लिए हमेशा वियोग बना रहता है।
युधिष्ठिर ने कहा अब ये बताइए चिरंजीवी मनुष्यों को सुख किस बात में है?
जो अपने परिश्रम से घर में केवल साग बनाकर खाता है, दुसरों के अधीन नहीं होता उसे ही सुख है। दूसरों के सामने दीनता न दिखाकर अपने घर में फल और साग भोजन करना अच्छा है। दूसरे घर में तिरस्कार सह कर रोज मीठा खाना भी अच्छा नहीं है। जो दुसरे के घर में ऐसे अन्न खाता है वह कुत्ते के समान है। जो हमेशा मेहमानों के बाद में भोजन करता है। उतने ही हजारों गायों के दान पुण्य उस दाता को होता है। उसके द्वारा युवावस्था में जो पाप हुए हैं। वे सब नष्ट हो जाते हैं।
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