MOTHER DAY
गुरू गोरख की कृपा से जब गोपीचंद संन्यासी हो कर अपनी मां से प्रथम बार भिक्षा मांगने गए तो उनकी माता ने कहा, बेटे, तेरे संन्यासी बन जाने के बाद मैं तुझ को क्या भिक्षा दे सकती हूं। किंतु तीन बातें बता सकती हूं, संभव हो तो इनका पालन अवश्य करना। एक, मजबूत किले में रहना। दो, स्वादिष्ट भोजन ही करना। और तीन, नरम बिस्तर में सोना।
गोपीचंद ने कहा, मां, मुझ संन्यासी के लिए यह कहां संभव होगा। तब माता ने समझाया, मजबूत किले का अर्थ है कि शास्त्रों में महा पुरुषों ने जो व्रत बताए हैं उनका दृढ़ता से पालन करना। स्वादिष्ट भोजन का अर्थ है कि जब भूख लगे तभी कुछ खाना। और नरम बिस्तर का अर्थ है कि जब बहुत ज्यादा नींद सताए तभी सोना। माता द्वारा दिया गया यह उपदेश असल में उनका आशीर्वाद ही था। विदेश जाते समय महात्मा गांधी ने भी अपनी माता के सामने तीन प्रतिज्ञाएं की थीं। एक, मैं मांस का स्पर्श नहीं करूंगा। दो, कभी मदिरा पान नहीं करूंगा। और तीन, पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करूंगा। गांधी ने आजीवन इन व्रतों का पालन किया। इस प्रकार अपनी मां पुतली बाई के आशीर्वाद से गांधी बीसवीं सदी के युगपुरुष सिद्ध हुए।
बचपन में भीम राव आंबेडकर बड़े ही शरारती और बातूनी थे। वे पड़ोस के बच्चों को बहुत परेशान करते थे। उनकी इस आदत से मां भी चिंतित रहती थीं। एक दिन उन्होंने भीमराव को समझाया, तुझे तो गौतम तथा कबीर बनना है। वे लोग किसी को भी परेशान नहीं करते थे। नन्हें भीमराव ने उत्साह में आ कर कहा, मां, उनके जैसा ही बनूंगा और अब से कोई शरारत नहीं करूंगा।
अगले दिन फिर वही शिकायत आई। पर मां ने धैर्य नहीं खोया। रात को उनके लिए खीर बनाई और उनके सिर पर हाथ फेरते हुए समझाया , बेटा ! तू पढ़ने में बहुत होशियार है। तुझे मन लगा कर पढ़ना चाहिए। इसके बाद जब उन्होंने भीमराव के आगे खीर परोसी , तो वे अचानक पूछ बैठे , मां , तुम क्या मुझे गौतम बुद्ध बनाना चाहती हो ? मां ने कहा , नहीं बेटे ! मैं तुझे संन्यासी नहीं बनाना चाहती। अच्छी पढ़ाई कर के तुझे दूसरों को भी राह दिखानी चाहिए। तुम्हें ऐसा समाज बनाना चाहिए , जिसमें सभी को विकास के समान अवसर प्राप्त हों। ऊंच - नीच का भेदभाव न हो।
यह माता का आशीर्वाद था। आगे चलकर बाबा साहेब ने स्वतंत्र भारत का संविधान लिखा जो एक नए समाज की व्यवस्था है।
गांधारी ने दुर्योधन को आदेश दिया था कि गंगा स्नान करके मेरे सामने नग्न अवस्था में आओ , इससे तुम्हारा शरीर वज्र का हो जाएगा। माता का यह वचन आदेश के साथ - साथ उनका अमोघ आशीर्वाद और रक्षा कवच भी था। किंतु दुर्योधन को लाज आई और वे माता के सामने वैसे नहीं जा सके। इसीलिए उन्हें युद्ध में भीम से पराजित होना पड़ा। भीम ने शरीर के उसी स्थल पर प्रहार किया जो वज्र नहीं हो सका था।
माता के वचन बच्चे के लिए रक्षा कवच का काम करते हैं। माता का आशीर्वाद अमोघ होता है। इसलिए हमारे उपनिषदों में माता को देवता कहा गया है। सुब्रह्मण्यम भारती कहते थे , श् परमात्मा के साथ पिता का संबंध आदर्श है और माता का यथार्थ। श् वह माता व्यष्टि रूप से जन्म देने वाली हो सकती है या समष्टि रूप में भवानी , देवी या भारत माता हो सकती है।
विदेश जाने से पूर्व विवेकानंद ने अपनी मां से आज्ञा मांगी। तब मां ने अचानक कहा , जरा वह चाकू उठाकर मुझे दे। विवेकानंद ने चाकू को नोक की ओर से पकड़ा और हत्थे वाला हिस्सा मां की ओर बढ़ाया। तब माता ने आशीर्वाद दिया , जा बेटा ! तू सचमुच दूसरों का हित सोचता है।
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