गुरुवार, दिसंबर 23, 2010

बेटी हूं मैं

बेटी हूं मैं

अपने मां पापा की आंखो का तारा हूं मैं।

क्योकि बेटी हूं मैं

लोगों से अक्सर कहते सुना है कि

बेटियां तो होती हैं पराया धन

तो क्यों हो इतने खुश

पर आज के असमान पर

चमकता सितारा हूं मैं।

आज पहुंच चुकी हूं आसमान तक

और तोड़ चुकी हूं हर सीमा ऊंचाइयों पर पहुंचने की

और आज नाज है मेरे अपनो को मुझ पर

क्योकि कभी सानिया मिर्जा

तो कभी साइना नेहवाल हूं

मैं तो कभी प्रतिभा देवी सिंह पाटिल,

तो कभी किरन बेदी हूं मैं

कभी ना बुझने पाए, जलती वो मसाल हूं मैं

बेटी हूं मैं

और नाज है मुझे मेरे होने पर,

क्योकि आज के भारत की नई पहचान हूं मैं

बेटी हूं मैं।

1 टिप्पणी:

Anju singh ने कहा…

bahut sundar kahi kavita hai aap ne...
dhanywad
kyuki mai bhi ek betee hun...