बुधवार, जुलाई 14, 2010

दुनिया के हर धर्म का सार

जो धर्म प्रेम, मानवता और भाईचारे का संदेश देने के लिए बना था आज उसी के नाम पर हिंसा और कटुता बढ़ाई जा रही है। इसलिये आज एक ऐसे विश्व धर्म की आवश्यकता महसूस की जा रही है, जो दिलों को जोड़ने वाला हो। हर धर्म में ऐसी बातें और प्रार्थनाएं हैं जो सभी धर्मों को जोड़ती हैं। हिन्दुओं में गायत्री मंत्र के रूप में ऐसी ही प्रार्थना है, जो हर धर्म का सार है।

हिन्दू - ईश्वर प्राणाधार, दुःखनाशक तथा सुख स्वरूप है। हम प्रेरक देव के उत्तम तेज का ध्यान करें। जो हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर बढ़ाने के लिए पवित्र प्रेरणा दें।

ईसाई - हे पिता, हमें परीक्षा में न डाल, लेकिन बुराई से बचा क्योंकि राज्य, पराक्रम तथा महिमा सदा तेरी ही है।

इस्लाम - हे अल्लाह, हम तेरी ही वन्दना करते तथा तुझी से सहायता चाहते हैं। हमें सीधा मार्ग दिखा, उन लोगों का मार्ग, जो तेरे कृपापात्र बने, न कि उनका, जो तेरे कोपभाजन बने तथा पथभ्रष्ट हुए।

सिख - ओंकार (ईश्वर) एक है। उसका नाम सत्य है वह सृष्टिकर्ता, समर्थ पुरुष, निर्भय, र्निवैर, जन्मरहित तथा स्वयंभू है। वह गुरु की कृपा से जाना जाता है।

यहूदी - हे जेहोवा (परमेश्वर) अपने धर्म के मार्ग में मेरा पथ-प्रदर्शन कर, मेरे आगे अपने सीधे मार्ग को दिखा।

शिंतो - हे परमेश्वर, हमारे नेत्र भले ही अभद्र वस्तु देखें परन्तु हमारे हृदय में अभद्र भाव उत्पन्न न हों। हमारे कान चाहे अपवित्र बातें सुनें, तो भी हमारे में अभद्र बातों का अनुभव न हो।

पारसी - वह परमगुरु (अहुरमज्द-परमेश्वर) अपने ऋत तथा सत्य के भंडार के कारण, राजा के समान महान् है। ईश्वर के नाम पर किये गये परोपकारों से मनुष्य प्रभु प्रेम का पात्र बनता है।

दाओ (ताओ) - दाओ (ब्रह्म) चिन्तन तथा पकड़ से परे है। केवल उसी के अनुसार आचरण ही उत्तम धर्म है।

जैन - अर्हन्तों को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार, आचार्यों को नमस्कार, उपाध्यायों को नमस्कार तथा सब साधुओं को नमस्कार ।

बौद्ध धर्म - मैं बुद्ध की शरण में जाता हूं, मैं धर्म की शरण में जाता हूँ, मैं संघ की शरण में जाता हूँ।

कनफ्यूशस - दूसरों के प्रति वैसा व्यवहार न करो, जैसा कि तुम उनसे अपने प्रति नहीं चाहते।

बहाई - हे मेरे ईश्वर, मैं साक्षी देता हूँ कि तुझे पहचानने तथा तेरी ही पूजा करने के लिए तूने मुझे उत्पन्न किया है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई परमात्मा नहीं है। तू ही है भयानक संकटों से तारनहार तथा स्व निर्भर।

1 टिप्पणी:

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

बेहद नेक विचार्! धार्येते इति धर्म:..अर्थात जिसे धारण किया जाए वही धर्म है....