सोमवार, फ़रवरी 08, 2010

आप का बेटा बड़ा हो तब आप.......?

आप का बेटा बड़ा हो तब आप.......? आपने कभी सोचा है कि जब आपकी अंगुली पकड़कर चलने वाला आपका लाड़ला अब युवा हो रहा है। उसकी ओर देखने और सोचने का नजरिया भी अब आपको बदलना होगा। किशोरावस्था जीवन की नाजुक अवस्था होती है। इस समय संयम, नियम, अनुशासन, प्रेम सभी का प्रयोग जरूरी हो जाता है। किशोरावस्था में आप के लाडले पर पढ़ाई के साथ साथ, रैगिंग का डर, खुद का स्वभाव, बुराइयों के साथ वह क्या करे? किस प्रकार का लोगों से बर्ताव करे यह सभी दबाव उस पर होते हैं। ऐसे समय में अभिभावकों और परिवार के सदस्य ही उसका मनोबल बढ़ाते हैं। इसके लिये आप के लाडले में आपका विश्वास ही उसे समर्थ बनाता है। वह कहा जाता है, किन दोस्तों से मिलता है, अपने पैसे को कैसे खर्च कर्ता है? इन सभी बातों का हिसाब मांगकर या फिर उसे टोककर मायूस न करें। आपकी जिम्मेदारी है कि सूक्ष्म निरीक्षण करें न कि सवालों की झड़ी लगाकर उसे अपनों से दूर होने को मजबूर करें। इससे अच्छा है कि उसके व्यवहार का निरंतर अवलोकन करते रहें।बचपन में हमारा बच्चा पप्पू, मुन्ना या फिर बबलू हो सकता है, लेकिन बड़े होने पर इन संबोधनों से उसके दोस्त उसका मजाक बना सकते हैं। कई बार तो उसे अपने नामों से खीझ भी हो जाती है। वाणी पर संयम रखने के साथ उससे बात करते समय उसे दबाने का प्रयास न करें। उसके साथ अपशब्दों का प्रयोग न करें।अनुशासन का आप भी पालन करें। उसके प्रति आप जो भी भावनाएं रखें, जरूरी नहीं कि उन सभी को अभिव्यक्त किया जाए। समय के आधार पर अपने ही अपने विचारों को उसके सामने रखें।उसके बारे में परिवारजन, रिश्तेदार या पड़ोसी कोई बात कहते हैं तो समय देखकर उनसे बात करें। उन बातों के बारे में स्पष्टीकरण लेते समय विनम्रता का भाव रखें। उसे ताने न मारें।बिना सोचे-समझे किसी बात को लेकर उस पर दोष न मढ़ें। पहले सभी बातों की पुख्ता जानकारी हासिल कर लें। सहशिक्षा का समय है इस कारण हो सकता है किसी सहपाठी लड़की अथवा मित्र से वह अधिक देर तक बातें करे या फिर समय व्यतीत करे तो उसका मखौल न उड़ाएँ, लोगों के बहकावे में न आकर अपने बच्चे को ताने न दें और उसे किसी कटघरे में खड़ा न करें।वर्तमान समय तकनीक का जमाना है। आज कम्प्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल के उपयोग अनिवार्यता बनते जा रहे हैं। उनका उपयोग करते समय ध्यान दें कि आपका बच्चा किस मोड़ पर है परंतु इस बात में अनावश्यक दखल न दें। थोड़ा नजरअंदाज करने की आदत को भी बढ़ाना चाहिए। हर बात पर टोका-टाकी न की जाए।भौतिकवादी समाज के हर अभिभावक अपने बच्चे को भौतिक सुविधायुक्त जीवन जीने का अवसर देना चाहते हैं, लेकिन उन्हें अवसरवादी होना भी जरूरी है। अपने बच्चे को अवसर भुनाने की समझ और अवसर भी दें।अपने बच्चे के सामने नकारात्मक उदाहरण न दें। किसी का बच्चा बिगड़ गया और फला के बच्चे ने अपने घरवालों का खून कर दिया जैसी बातें कभी बच्चे के सामने न करें।वह जिस भी क्षेत्र में जाना चाहता है उस क्षेत्र की बड़ी हस्तियों के बारे में उससे बातें करें। उसे उस क्षेत्र की ताकत और कमजोरी दोनों से अवगत कराएँ। उसके सामने सफल लोगों के बारे में बातें करें।किशोर मन से संवाद बनाए रखें। इस उम्र में उसे अपने दोस्तों का साथ अधिक अच्छा लगता है। फिर भी उससे उसकी पसंद की बातें करते रहें। कभी उसकी बात को बिना वजह काटे नहीं।वह अपनी सभी बातें, परेशानियाँ, जरूरतें और भावनाएँ आपके साथ शेयर करे, ऐसा विश्वास उसके मन में बनाने का प्रयत्न कीजिए। बार-बार टोका-टाकी, एक ही बात को दोहराना, युवा पसंद नहीं करते। भले ही इसमें उनका ही भला छुपा हो। इसी तरह तेज बाइक चलाना, इयरफोन पर गाने सुनना, गाड़ी पर अधिक बच्चों का बैठना और अन्य व्यसन करना इन सभी बातों को ध्यान में रखकर उसके बुरे परिणामों से उसे अवगत करवाया जा सकता है। किसी गलत काम को करने से एकदम रोके जाने से आपका बच्चा विद्रोही हो सकता है। साथ ही वह आपकी बातों को अनसुना कर सकता है। जिस समाज और समय में वह जी रहा है उसे उसकी पूरी आजादी दें। लेकिन उसे भी वास्तविक आजादी के मायने समझ में आना चाहिए। उसे पता चले कि सिर्फ 18 का होना या फिर कॉलेज जाना ही वास्तविक आजादी नहीं। अनुशासन, संस्कार से सफलता पाने का रास्ता आपको उसे बताना है। यह परिजनों की मौलिक जिम्मेदारी है जिसके लिए वे दिल से समय दें। तभी आप अपने बच्चे को वैचारिकता का धरातल दे सकते हैं जिससे वह आपका और अपना नाम बढ़ा सकता है।

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