रविवार, मार्च 23, 2014

काबुल में भारतीय दूतावास पर हमले में था आइएसआइ का हाथ

वाशिंगटन। काबुल में 2008 में भारतीय दूतावास पर हुए आतंकी हमले को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ की मंजूरी मिली हुई थी। आइएसआइ के वरिष्ठ अधिकारी इस हमले की निगरानी कर रहे थे। वरिष्ठ पत्रकार कारलोट्टा गाल की नई किताब में यह बात कही गई है।
सात जुलाई, 2008 को काबुल में भारतीय दूतावास पर हुए आत्मघाती कार बम हमले में 58 लोग मारे गए थे। इनमें दो शीर्ष भारतीय अधिकारी भी शामिल थे। इस घटना में 140 से अधिक लोग घायल हो गए थे।
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कारलोट्टा गाल की नई किताब 'द रांग एनेमी : अमेरिका इन अफगानिस्तान 2001-2004' में कहा गया है कि दूतावास पर बम हमले की घटना को आइएसआइ के शरारती एजेंटों द्वारा खुद से अंजाम नहीं दिया गया था। इसे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा मंजूरी दी गई थी। वे इसकी निगरानी कर रहे थे। यह किताब अगले माह बाजार में आने वाली है। गाल ने लिखा है कि तत्कालीन बुश प्रशासन फोन पर होने वाली बातचीत को पकड़ा था। इसके जरिए उसे हमले की पहले से खुफिया सूचना मिली थी, लेकिन वह इसे नहीं रोक सका। गाल 9/11 हमले के बाद अफगानिस्तान में रहीं पश्चिमी देशों की कुछ चुनिंदा महिला रिपोर्टरों में शामिल हैं। उन्होंने 10 वर्षो तक अफगानिस्तान-पाकिस्तान संघर्ष के बारे में रिपोर्टिग की है। किताब के मुताबिक काबुल में भारतीय दूतावास पर हुए हमले की इस घटना से आइएसआइ की मिलीभगत के बारे में पर्दाफाश होता है। गाल का कहना है, 'अमेरिकी और अफगानी अधिकारियों ने आइएसआइ अधिकारियों के फोन कॉल्स को बीच में पकड़ा था। इसमें आइएसआइ अधिकारी काबुल में आतंकियों के साथ हमले की योजना पर बात कर रहे थे। हालांकि फोन कॉल की निगरानी करने वाले खुफिया अधिकारी उस समय यह नहीं जान सके थे कि किस चीज को लेकर योजना बनाई जा रही है, लेकिन आतंकी हमले को प्रोत्साहन देने में एक उच्च स्तरीय अधिकारी के शामिल होने की बात बहुत स्पष्ट थी। इस संबंध में प्रमाण इतने घातक थे कि बुश प्रशासन ने अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआइए के उप प्रमुख स्टीफेन कापस को पाकिस्तानियों के साथ आपत्ति दर्ज कराने के लिए इस्लामाबाद भेजा था। लेकिन कापस के पाकिस्तान पहुंचने से पहले ही हमले को अंजाम दे दिया गया।'

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