नेताजी का कला प्रेमी परिवार
सैफई महोत्सव में नेताजी राग-रागनियों का आऩंद लेते दिखे। मुलायम सिंह कह सकते हैं कि उनका घराना केवल राजनीति ही नहीं करता, वहां कला के लिए समर्पित लोग भी है। उनकी एक बहू जानी-मानी डांसर हैं तो अखिलेश यादव के सौतेले छोटे भाई प्रतीक की पत्नी अपर्णा गीत गाती हैं।
भला उनके म्यूजिक एलबम को रिलीज करने के लिए सैफई महोत्सव से अच्छी जगह क्या होती। उनके जेठजी मुख्यमंत्री हैं तो फिर उनके ही हाथ से रिलीज होना ही था। जहां बालीवुड के बड़े बड़े कलाकारों के विशेष शो थे, वहां अर्पणा का वह एलबम भी जारी हुआ, जिसमें उन्होंने अपने ससुर मुलायम सिंह की प्रशंसा में अपना स्वर दिया है।
लग यही रहा था कि चुनाव होंगे तो समाजवादी पार्टी उनकी इस कला का बखूबी इस्तेमाल करेगी। चारों ओर मुलायम की प्रशंसा वाला एलबम बजेगा। खास कर आजमगढ में, जहां प्रतीक को टिकट देने की बात थी। आजमगढ़ में प्रतीक नहीं नेताजी ही चुनाव लड़ रहे हैं। और उस एलबम की आवाज भी नहीं सुनाई दे रही है।
भला उनके म्यूजिक एलबम को रिलीज करने के लिए सैफई महोत्सव से अच्छी जगह क्या होती। उनके जेठजी मुख्यमंत्री हैं तो फिर उनके ही हाथ से रिलीज होना ही था। जहां बालीवुड के बड़े बड़े कलाकारों के विशेष शो थे, वहां अर्पणा का वह एलबम भी जारी हुआ, जिसमें उन्होंने अपने ससुर मुलायम सिंह की प्रशंसा में अपना स्वर दिया है।
लग यही रहा था कि चुनाव होंगे तो समाजवादी पार्टी उनकी इस कला का बखूबी इस्तेमाल करेगी। चारों ओर मुलायम की प्रशंसा वाला एलबम बजेगा। खास कर आजमगढ में, जहां प्रतीक को टिकट देने की बात थी। आजमगढ़ में प्रतीक नहीं नेताजी ही चुनाव लड़ रहे हैं। और उस एलबम की आवाज भी नहीं सुनाई दे रही है।
जरीवाल पर स्याही
बड़े कसीदे से तैयार किया गया क्रांतिकारी व्यक्तित्व फीका हो जाता है, अगर किसी ने स्याही नहीं फेंक दी। न जाने इस स्याही में कैसा सगुन है कि जिसके कपड़ों पर फेंकी जाती है, उसका चेहरा खिल जाता है। स्याही के पड़ते ही जो परस्पर बयान चलते हैं। एक तरफ कहा जाता है स्याही वाले कार्यकर्ता साथ चलते हैं। तो दूसरी ओर बताया जाता है कि जो हमारी उपस्थिति से डर रहे हैं वो हम पर स्याही फेंक रहे हैं।
स्याही किसने फेंकी और क्यों फेंकी इस पर न उलझें। बस स्याही के करिश्मे को देखे। बिल्कुल नाप तोल कर फेंकी जाती है। यानी अगर जलूस वाली गाड़ी में नेताजी के साथ आठ दस लोग खड़े हों तो सब पर थोड़े थोड़ पड़ जाते हैं। ऐसा नहीं होता कि केवल नेताजी पर ही एकदम स्याही उड़ेल दी जाए। स्याही सही अऩुपात बना कर फेंकी जाती है। अगर स्याही को चेहरे पर मलना होता है तो वह दोनों हाथ के बीच इतनी करीने से रखी जाती है। उसका भी अनुपात है कि कितनी स्याही चेहरे पर लगाई जाए। पर अजब यही है कि स्याही फेंकने का यह कैसा विरोध होता जिससे नेताजी को खुशी होती है। कुछ देर तो वह स्याही को पोंछते भी नहीं है। यूं ही रहने देते हैं। जो न देखना चाहे उसे भी दिखाते हैं कि देखिए हम पर स्याही फेंकी गई।
वाहनों में साथ चलते वाले भी अपने को भाग्यशाली समझते हैं कि नेताजी पर पड़ने वाले कुछ नीले छिंटे उन तक भी पहुंचे। संघर्ष त्याग की जब बात होगी तो उन्हें भी याद किया जाता रहेगा। इसलिए केवल बड़े नेताजी ही नहीं, साथ चलने वाले मुस्कराते हैं। जब तक स्याही फेंकने वाला न आए, उनकी नजरें यहां वहां कुछ टटोलती रहती हैं। कहां है भीड़ में स्याही वाला।
स्याही किसने फेंकी और क्यों फेंकी इस पर न उलझें। बस स्याही के करिश्मे को देखे। बिल्कुल नाप तोल कर फेंकी जाती है। यानी अगर जलूस वाली गाड़ी में नेताजी के साथ आठ दस लोग खड़े हों तो सब पर थोड़े थोड़ पड़ जाते हैं। ऐसा नहीं होता कि केवल नेताजी पर ही एकदम स्याही उड़ेल दी जाए। स्याही सही अऩुपात बना कर फेंकी जाती है। अगर स्याही को चेहरे पर मलना होता है तो वह दोनों हाथ के बीच इतनी करीने से रखी जाती है। उसका भी अनुपात है कि कितनी स्याही चेहरे पर लगाई जाए। पर अजब यही है कि स्याही फेंकने का यह कैसा विरोध होता जिससे नेताजी को खुशी होती है। कुछ देर तो वह स्याही को पोंछते भी नहीं है। यूं ही रहने देते हैं। जो न देखना चाहे उसे भी दिखाते हैं कि देखिए हम पर स्याही फेंकी गई।
वाहनों में साथ चलते वाले भी अपने को भाग्यशाली समझते हैं कि नेताजी पर पड़ने वाले कुछ नीले छिंटे उन तक भी पहुंचे। संघर्ष त्याग की जब बात होगी तो उन्हें भी याद किया जाता रहेगा। इसलिए केवल बड़े नेताजी ही नहीं, साथ चलने वाले मुस्कराते हैं। जब तक स्याही फेंकने वाला न आए, उनकी नजरें यहां वहां कुछ टटोलती रहती हैं। कहां है भीड़ में स्याही वाला।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें