नई दिल्ली । उत्तर प्रदेश में राजनीतिक जमीन बचाने की चुनौती से जूझ रही कांग्रेस का राज्य में प्रबंधन प्रियंका गांधी वाड्रा ने पूरी तरह संभाल लिया है। पिछले लोकसभा चुनावों में राज्य में करिश्माई प्रदर्शन के बूते 22 सीटों पर जीत दर्ज कर चुकी पार्टी के लिए फिलहाल इन सीटों को बरकरार रखना बड़ी चुनौती है। भाजपा के पीएम प्रत्याशी नरेंद्र मोदी की हवा के बीच कांग्रेस के ज्यादातर प्रत्याशी पाला बदलने या सीट बदलने के जुगाड़ में हैं। ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी के चुनाव क्षेत्र का प्रबंधन देख रही प्रियंका के लिए राज्य में पार्टी का रसूख बचाए रखने की चुनौती है।
संगठन में छाई निराशा और बड़े नेताओं के आपसी अहं के बीच राहुल के लिए सियासी लिहाज से अहम उत्तर प्रदेश में प्रियंका अब सक्रिय रूप से फैसलों में अपना दखल बढ़ा चुकी हैं। राहुल गांधी के आवास स्थित कार्यालय और 15 जीआरजी [गुरुद्वारा रकाबगंज] स्थित चुनावी वार रूम में भी पार्टी की रणनीति तय करने में अहम भूमिका निभा रही हैं। प्रियंका न सिर्फ प्रदेश के नेताओं से मिल रही हैं बल्कि राज्य के जातीय और क्षेत्रीय समीकरण के आधार पर राहुल गांधी के चुनावी दौरों की रूपरेखा भी बना रही हैं।
दरअसल खस्ताहाल हाल संगठन और भीतरी गुटबाजी के बीच पार्टी की चुनावी संभावनाएं सिमटती जा रही हैं। प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री जहां फैजाबाद में अपनी ही सीट बचाने की चुनौती से जूझ रहे हैं, वहीं प्रभारी महासचिव मधुसूदन मिस्त्री अभी भी राजनीतिक रूप से बेहद जागरूक राज्य के कार्यकर्ताओं से जुड़ने के लिए संघर्षरत हैं। जातीयता के मकड़जाल में कैद प्रदेश की राजनीति में पार्टी के पास जातीय समीकरण साधने वाला कोई बड़ा नेता भी नहीं है। राज्य में हालात पार्टी के मुफीद न देख डुमरियागंज से सासंद और प्रदेश के एक दिन के मुख्यमंत्री रहे जगदंबिका पाल कांग्रेस से किनारा कर चुके हैं।
पार्टी के बड़े और स्टार प्रचारक रहे चेहरे भी हार के डर से सीट बदलने के लिए दिनरात एक किए हुए हैं। मुरादाबाद से पार्टी के सांसद मुहम्मद अजहरुद्दीन बंगाल का रुख कर रहे हैं तो पार्टी प्रवक्ता राजबब्बर फिरोजाबाद छोड़कर कहीं से भी लड़ना चाह रहे हैं। केंद्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष पीएल पुनिया के बीच चल रहा शीत युद्ध चरम पर है। यही नहीं युवाओं को राजनीति में ज्यादा हिस्सेदारी की बात कर रही पार्टी के पास राज्य में एक अदद युवा चेहरा भी नहीं है, जो पार्टी में युवाओं को खींच सके। ऐसे में प्रियंका की आमद निराश कार्यकर्ताओं में जान फूंकने की कोशिश है।
गिरता ग्राफ :
2009 के लोकसभा चुनावों में कल्याण सिंह के सपा में जाने और अल्पसंख्यकों में पार्टी के प्रति रूझान तथा स्थानीय समीकरणों के चलते कांग्रेस ने 18.25 प्रतिशत वोटों के साथ 22 सीटों पर दर्ज की थी। लेकिन 2012 में हुए राज्य के विधानसभा चुनावों में पार्टी को महज 28 सीटें ही मिल सकी। यही नहीं पार्टी का वोट प्रतिशत भी गिर कर 11.65 ही रह गया।
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