सांप्रदायिक दंगों की तपिश से निकले पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता को अब सियासी इम्तिहान देना है। चुनावी बिसात तैयार है और वोटरों का लुभाने को चालें चली जा रही है। छोटे राज्य बनाने की मांग हो अथवा इलाहाबाद हाईकोर्ट की बेंच जैसे मुद्दों पर जनादेश लेने की बात पीछे छूटती दिख रही है। क्षेत्र में बंद होती औद्योगिक इकाइयां, बढ़ती बेरोजगारी, हजारों करोड़ रुपये का बकाया गन्ना मूल्य भुगतान नहीं होने से किसानों की बदहाली, जर्जर सड़कें और गंभीर जलसंकट सरीखी समस्याएं गौण हो गई हैं, केवल चुनाव जीतने की जोड़तोड़ हावी है। राजनीतिक गहमागहमी के माहौल में धर्मवाद, जातिवाद, भाई-भतीजावाद के साथ ग्लैमर के तड़के ने आधारभूत मसले मानो भुला दिए हैं।
दिल्ली से सटे इस क्षेत्र में पहले चरण में मतदान होगा। वोटिंग के रुझान को अपने पक्ष में करने के लिए बहुजन समाज पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल, आम आदमी पार्टी व कांग्रेस की परीक्षा होगी।
दंगों के बाद बने हालात में भाजपा को इस क्षेत्र से खासी उम्मीदें हैं। मोदी लहर में अधिकतम सीटें जीतने का रिकार्ड टूटने का दावा है लेकिन जाट आरक्षण के बाद रालोद कांग्रेस गठबंधन को ताकत मिलने से बेचैनी भी बढ़ी है। बढ़त लेने के लिए भाजपा ने विधायकों सहारनपुर से राघव लखनपाल, कैराना से हुकुम सिंह, गौतमबुद्धनगर से डा.महेश शर्मा, मुरादाबाद से सर्वेश सिंह व रामपुर से नेपाल सिंह को चुनावी जंग में उतार दिया वहीं मथुरा में रालोद को पटखनी देने को हेमा मालिनी के ग्लैमर का सहारा लेने में भी चूक नहीं की। बागपत में रालोद मुखिया अजित सिंह की घेराबंदी को मुंबई के पुलिस कमिश्नर रहे सत्यपाल सिंह को लगाया है। राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह की सीट गाजियाबाद को आम आदमी पार्टी की हवा में सलामत रखने का जिम्मा पूर्व सेनाध्यक्ष वीके सिंह को सौंपा है। नगीना में डा. यशवंत सिंह व फतेहपुर सीकरी से बाबूलाल का मैदान में उतार दलबदलुओं पर भी दांव चला है। पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की वापसी से लोध वोट बैंक की ऊर्जा पाई भाजपा करो या मरो की स्थिति में है।
समाजवादी पार्टी को अपने दो वर्ष के शासनकाल में नफे नुकसान का आंकलन करना है। मुस्लिम व पिछड़ा वर्ग वोट बैंक के सहारे समाजवादी पार्टी पूरी ताकत झोंके हुए है। क्षेत्र में दो दर्जन से अधिक दर्जा प्राप्त मंत्रियों की फौज विधानसभा चुनाव में मिले समर्थन को दोहराने की कोशिशों में लगी है। यादव परिवार के बाद सरकार में सर्वाधिक कद्दावर मंत्री आजम खां को साबित करना होगा कि उनको अतिरिक्त तव्वजो देने से पार्टी के वोटों में इजाफा हुआ। बिना चुनाव लड़े मंत्री बनाए गए रामसकल गुर्जर अपने समाज का कितना वोट सपा को दिला पायेंगे, यह चुनाव के बाद तय होगा। पश्चिम की 27 संसदीय सीटों पर सपा अपने सांसदों की गिनती सात से ऊपर बढ़ाने को पूरा दांव लगाए हुए है।
बसपा फिर मुस्लिम-दलित गठजोड़ के भरोसे पश्चिम उत्तर प्रदेश में सबसे आगे बने रहने की जुगत में है, पर सांप्रदायिक दंगे की तपिश में दलित वोटों के फिसलने का डर भी सता रहा है। बीते लोकसभा चुनाव में सपा का कोई मुस्लिम सांसद भले ही नहीं चुना गया था लेकिन इस बार पार्टी उम्मीदों को बनाए हुए है।
दंगों की मार से पिटे रालोद के लिए जाट आरक्षण भुनाने की उम्मीद है। अमर सिंह व जयाप्रदा के शामिल होने से रालोद पहली बार ग्लैमर का सहारा भी मिला है। इसके बल पर रालोद ने सांसद संजय चौहान का टिकट का काट अभिनेत्री जयाप्रदा को बिजनौर से उतारा है जबकि अमर सिंह फतेहपुर सीकरी सीट से ताल ठोंकेगे। रालोद ने जाटों को रिझाने के लिए राकेश टिकैत को अमरोहा से टिकट थमा दिया है। करीब 17 वर्ष बाद अजित सिंह व टिकैत परिवार नजदीक आए हैं लेकिन मथुरा में जंयत चौधरी के खिलाफ फिल्म अभिनेत्री हेमा मालिनी के आने से रालोद की बेचैनी बढ़ी है।
कांग्रेस के लिए रालोद व महान दल से गठबंधन ही मुख्य चुनावी आधार बना है। इसके अलावा मेरठ से फिल्म अभिनेत्री नगमा और गाजियाबाद से राजबब्बर को उम्मीदवार बनाकर कांग्रेस पश्चिम उप्र में अपने वजूद को बनाए रखना चाहती है। भूमि अधिग्रहण की समस्या को लेकर पश्चिमी उप्र में कांग्रेस के राहुल गांधी में लम्बा आंदोलन किया और केंद्र सरकार से भूमि अधिग्रहण कानून भी बनवाया परन्तु चुनाव में इसका कितना लाभ मिल पाएगा, यह अभी कहना मुश्किल होगा?
दिल्ली में बड़ा सियासी उलटफेर करने वाली आम आदमी पार्टी की असल परीक्षा भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही होगी। पार्टी के अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसौदिया व कुमार विश्वास जैसे अधिकतर प्रमुख नेता राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रहते है। उनके आंदोलनों को भी यहां से ताकत मिलती रही है। पश्चिम उप्र की सभी 27 सीटों 'आप' ने पर उम्मीदवार उतारे है, अब देखना यह है कि लोकसभा चुनाव में उसे वोटों के रूप में आम आदमी की कितनी भागीदारी मिलेगी।
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