सोमवार, मार्च 10, 2014

खाद्य सुरक्षा: आबादी से ज्यादा लोग चयनित, 84 लाख से ज्यादा मिले नाम

खाद्य सुरक्षा: आबादी से ज्यादा लोग चयनित, 84 लाख नाम मिले ज्यादाजयपुर. पिछली कांग्रेस सरकार में विधानसभा चुनाव से पहले लागू की गई खाद्य सुरक्षा योजना के तहत पांच जिलों में आबादी से ज्यादा लोग चयनित कर दिए। योजना में 84 लाख नाम ज्यादा जोड़े गए। चुनावी फायदा उठाने की मंशा से अपात्र लोगों का भी इसमें चयन कर दिया गया। हाल ही मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के निर्देश के बाद कराई गई योजना की समीक्षा में यह गड़बड़ी सामने आई।
दौसा, डूंगरपुर, धौलपुर, बारां और सवाई माधोपुर जिलों में 2011 की जनगणना में बताई गई जनसंख्या से भी ज्यादा लोगों का चयन कर दिया गया है। जांच में यह भी खुलासा हुआ कि जल्दबाजी में तैयार की गई कई सूचियों में जिम्मेदार अधिकारियों ने हस्ताक्षर ही नहीं कर रखे हैं।
अक्टूबर 2013 में लागू किए गए खाद्य सुरक्षा के नए प्रावधानों में एपीएल श्रेणी को पूरी तरह खत्म कर दिया गया। पूरे प्रदेश में निर्धारित 4 करोड़ 46 लाख लोगों की जगह 5 करोड़ 31 लाख लोगों का खाद्य सुरक्षा में चयन कर दिया। दूसरी तरफ लाखों जरूरतमंद और वास्तविक हकदारों को खाद्य सुरक्षा के दायरे में शामिल ही नहीं किया गया। खाद्य सुरक्षा के दायरे में आने वाले व्यक्ति को दो रुपए प्रति किलो गेहूं देने का प्रावधान है। इस तरह की कई गड़बडिय़ां और विसंगतियां मुख्यमंत्री के निर्देश पर गहलोत सरकार के अंतिम छह माह के फैसलों की जांच के दौरान पकड़ में आई हैं। खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग की प्रारंभिक जांच में सामने आया कि आयकर चुकाने वाले और चार पहिया वाहन रखने वालों समेत करीब 30 प्रतिशत ऐसे लोगों के नाम फर्जी तरीके से जोड़े गए, जो गरीब नहीं हैं।
सामाजिक पेंशन प्राप्त करने वाले सभी लोग इस खाद्य सुरक्षा के दायरे में है। विभाग के सूत्रों के मुताबिक, पिछली सरकार में जल्दबाजी में 84 लाख अतिरिक्त ऐसे लोगों को खाद्य सुरक्षा के दायरे में शामिल कर लिया, जो अपात्र हैं। दूसरी तरफ बड़ी संख्या में ऐसे लोग वंचित रह गए जिनको वास्तव में लाभ मिलना चाहिए था। अब राज्य सरकार आचार संहिता खत्म होने के बाद नए सिरे से पड़ताल कर पात्र एवं सभी हकदार व्यक्तियों को खाद्य सुरक्षा के दायरे में शामिल करेगी।
लोकसभा चुनाव के बाद कटेंगे नाम
राज्य सरकार योजना में चयनित लोगों की ग्राउंड रियलिटी का लोकसभा चुनाव के बाद पता करवाएगी और जरूरतमंदों का नए सिरे से नाम जोड़ेगी। ग्रामीण क्षेत्र में 1500 स्क्वायर फीट और शहरी क्षेत्र में एक हजार वर्ग फीट के पक्के मकान वालों का नाम काटा जाएगा। आयकर दाता और चार पहिया वाहन वाले लोगों के नामों को सूची से बाहर किया जाएगा। रसद विभाग के आला अफसरों की मानें तो 30 प्रतिशत नाम ऐसे लोगों के हैं।

एपीएल श्रेणी खत्म किए जाने से गेहूं मिलना हुआ बंद
कांग्रेस शासन में लागू खाद्य सुरक्षा कानून के वक्तएपीएल श्रेणी को ही खत्म कर शहरी क्षेत्र में 7 कैटेगरी को बाहर कर दिया गया। इस वजह से एपीएल श्रेणी को गत शासन के समय से ही गेहूं नहीं मिल रहा है। पहले एपीएल श्रेणी के लिए 68 हजार मैट्रिक टन गेहूूं आता था, जिनको पिसा कर प्रति परिवार 25 किलो आटा वितरित किया जाता था।   
गेहूं का कोटा बढ़ा, फिर भी कमी
पहले एपीएल, बीपीएल, अंत्योदय आदि सभी श्रेणी में वितरित करने के लिए 1.81 लाख मैट्रिक टन गेहूं प्रति महीने आता था। अब यह 2.32 लाख मैट्रिक टन प्रति माह आ रहा है। इसके बावजूद लोगों को पूरा नहीं मिल पा रहा है। इसकी असली वजह बड़ी संख्या में ऐसे लोगों के नाम जुडऩा है, जो योजना के तहत हकदार ही नहीं थे।

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