सोमवार, मार्च 10, 2014

जानें, वो कौन से हैं 5 मुद्दे, जो देश के लिए जरूरी मगर चुनावी चर्चा नहीं बनते

जानें, वो कौन से हैं 5 मुद्दे, जो देश के लिए जरूरी मगर चुनावी चर्चा नहीं बनतेनई दिल्ली. लोकसभा चुनाव सिर पर है। पार्टियों और नेताओं ने सभाएं और प्रचार शुरू कर दिया है, लेकिन इस बार चुनाव में बातें सिर्फ कुछ चेहरों की ही हो रही है। मुद्दे गायब हैं। करप्शन और सांप्रदायिकता को छोड़कर अन्य किसी बात की चर्चा नहीं है। चुनाव से पहले डीबी स्टार ने विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों से जाने देश के कुछ अहम मुद्दे। ये स्टोरी IIM के इकोनॉमिक्स प्रोफेसर गणेश कुमार एन, विचारक एवं वरिष्ठ लेखक गुरचरन दास, वरिष्ठ पत्रकार एवं टीवी एंकर रवीश कुमार, विदेशी मामलों के जानकार वेद प्रताप वैदिक, NCERT के पूर्व डायरेक्टर जेएस राजपूत और जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर से बातचीत पर आधारित है। आइए जानते हैं देश के लिए उन 5 जरूरी मुद्दों के बारे में, जो चुनावी चर्चा में नहीं उठते...
 
1. स्वास्थ्य सुरक्षा 
 
चुनावी मौसम की सभाओं और टीवी की चर्चाओं में जो मुद्दे एक दम गायब हैं, उन्हीं में से एक है हेल्थकेयर। देश में हेल्थकेयर की हालत बेहद खराब है। देश में 1050 लोगों पर एक बेड उपलब्ध है, जबकि पश्चिमी देशों में यह आंकड़ा करीब 250 से 300 लोगों पर एक बेड का है। गांव में तो करीब 50 फीसदी लोग अस्पताल तक पहुंच ही नहीं पाते। अगर पहुंच भी जाते हैं तो वहां पर उन्हें कोई खास सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं। बावजूद इसके कोई भी पार्टी मुख्य रूप से स्वास्थ्य सुविधाओं पर बात नहीं करती है। 
 
फैक्ट: भारत में प्रति एक हजार लोगों पर केवल 0.65 डॉक्टर्स की उपलब्धता है। WHO के अनुसार एक हजार लोगों पर कम से कम एक डॉक्टर तो होना ही चाहिए।
. शिक्षा सुविधा 
 
किसी भी देश के विकास के लिए शिक्षा का स्तर ठीक होना बेहद जरूरी है। देश में चुनावों के दौरान कभी भी शिक्षा पर बात नहीं की जाती। सरकारी स्कूलों की स्थिति बेहद खराब है। देशभर में करीब 12 लाख टीचर्स की कमी है। IIM और IIT जैसे संस्थानों में टीचर्स की सैकड़ों पोस्ट खाली हैं। देश में 80 छात्रों पर एक टीचर उपलब्ध है, जबकि यह आंकड़ा प्रति टीचर 30 (प्राइमरी लेवल) और 35 (अपर प्राइमरी लेवल) छात्रों का होना चाहिए। देश में इंजीनियरिंग कॉलेज तेजी से खुल और बंद हो रहे हैं। इन कॉलेजों में स्टैंडर्ड की बेहद कमी है। 
 
फैक्ट: सितंबर 2013 में क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में देश की एक भी यूनिवर्सिटी टॉप 200 यूनिवर्सिटीज में नहीं थी। वर्ष 2013 के बजट में शिक्षा के लिए 65,869 करोड़ रुपए दिए गए, जो कि वर्तमान स्थिति के हिसाब से कम हैं
 
3. रोजगार के अवसर 
 
भारत में पिछले कुछ दशकों से बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है। इस बार का चुनाव युवाओं पर केंद्रित है। बावजूद इसके उनकी नौकरियों के मुद्दे पर कोई पार्टी ध्यान नहीं दे रही है। श्रम मंत्रालय की दिसंबर 2013 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार 15 से 29 वर्ष के 13.3 फीसदी युवा बेरोजगार हैं। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक देश में प्रति 1000 लोगों में से 27 लोग बेरोजगार हैं, जबकि दो साल पहले यह आंकड़ा 25 लोगों का था। ऐसे में भी हमारे नेताओं के बीच इस मुद्दे की चर्चा नहीं है। 
 
फैक्ट: इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक वर्ष 2013 में बेरोजगारी की दर 3.7 फीसदी थी, जो इस वर्ष 3.8 फीसदी हो सकती है। यह दर टोटल लेबर फोर्स के आधार पर है। 

4. गरीबी उन्मूलन 
 
देश में पिछले कुछ सालों में गरीबी और इसके पैमाने पर जमकर बहस हुई है, लेकिन हमेशा की तरह इस चुनाव अभियान में कहीं भी गरीबों की बात नहीं की जा रही है। सरकार के अनुसार वर्ष 2012 तक देश में करीब 26.90 करोड़ गरीब हैं, लेकिन सरकारी पैमाना और आकलन ऐसा है कि तमाम विशेषज्ञ इस आंकड़ें को सही नहीं मानते हैं। दूसरी तरफ इनके लिए सरकारें क्या करेंगी? इनकी स्थिति कैसे सुधरेगी? आने वाली सरकार इन्हें क्या राहत देगी? आदि बातें कोई नेता नहीं कर रहा है। 
 
फैक्ट: अप्रैल 2013 में वल्र्ड बैंक ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया में अभी भी 1.20 अरब लोग बेहद गरीब हैं। इनमें से करीब 33 फीसदी गरीब भारत में ही हैं, जो रोजाना गरीबी के अंतरराष्ट्रीय मानक यानी 1.25 डॉलर से कम में गुजारा करते हैं। 
5. विदेश नीति 
 
किसी भी देश के लिए विदेशी संबंध और नीतियां बेहद जरूरी होती हैं। किस पार्टी का विदेश नीति को लेकर क्या रुख है, इस पर कोई चर्चा नहीं करता है। विदेश नीति के मामले में हमारा ढर्रा पुराना है। नीतियां पर्सनैलिटी बेस्ड नहीं हैं और उनको अफसर ही बनाते रहते हैं। हम कभी भी चीन, अमेरिका और पाकिस्तान पर वैसा दबाव नहीं बनाते हैं, जैसा हमें बनाना चाहिए। किसी भी मामले में कभी हम जल्दबाजी करते हैं तो कभी पीछे हट जाते हैं। हमें अपने करोबार को बढ़ाने के लिए विशेष रूप से दक्षेस के अलाव अन्य पड़ोसी देशों से संबंध मधुर करने पर जोर देना होगा। 
 
फैक्ट: वर्ष 2013 में 15 दिसंबर तक पाकिस्तान ने पूरे साल में 196 बार युद्ध विराम का उल्लंघन किया है, जबकि वर्ष 2012 में यह आंकड़ा 93 का था।
 
मुद्दे तो ये भी हैं
 
1. देश में भ्रष्टाचार को दूर करने की बातें तो हो रही हैं, लेकिन इसके लिए कोई कानूनी फ्रेमवर्क की बात नहीं कर रहा है कि यह कैसे होगा। 
 
2. विकास की बातें सभी नेता कर रहे हैं, लेकिन विकास नियोजन क्या है, असमानता कैसे मिटेगी आदि सवाल का जवाब कोई नहीं देता। 
 
3. कोई भी पार्टी या नेता जीवन बीमा, भविष्य की आर्थिक नीतियां आदि की बात नहीं कर रहा है। जो करते भी हैं तो वो कभी स्पष्ट चर्चा कर इसे मुद्दा नहीं बना रहे हैं। 
 
4. खेती, पर्यावरण, श्रमिकों की आर्थिक सुरक्षा आदि की बातें नहीं हो रही हैं। मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर पर बेहद ध्यान देने की जरूरत है। 
 

कोई टिप्पणी नहीं: