शनिवार, दिसंबर 07, 2013

फिल्में मेरा पहला प्यार हैं-नीतू चंद्रा

मुंबई। अभिनेत्री नीतू चंद्रा के पास इन दिनों खुश होने की दो बड़ी वजहें हैं। एक तो उनकी ग्रीक फिल्म 'ब्लॉक 12' का प्रदर्शन इंटरनेशन फिल्म फेस्टिवल गोवा में हुआ है। फिल्म को स्टैंडिंग ओवेशन मिला और जिन लोगों को टिकटें नहीं मिलीं, उन्हें मजबूरन दूसरे थिएटर में जाना पड़ा। दूसरी बात यह है कि उनका नाटक 'उमराव जान' अब देश भर के प्रेक्षागृहों में मंचन के लिए तैयार है। पिछले दिनों इसका मंचन मुंबई के पृथ्वी थिएटर में हुआ था।
इन दोनों ही खुशियों के बारे में नीतू चंद्रा कहती हैं, 'इन दिनों मैं गोवा में हूं। मौसम बदला है और गला थोड़ा खराब है, लेकिन कल मेरी ग्रीक फिल्म का प्रदर्शन हुआ। एक अभिनेत्री के तौर पर बहुत अच्छा लगा। लोग कतार में टिकट के लिए खड़े थे और अंदर का पूरा शो हाउसफुल था। फिल्म के टिकट कुछ लोगों को नहीं मिले। मुझे उनके साथ सहानुभूति है, लेकिन एक अभिनेत्री के तौर पर मुझे इस बात की खुशी थी कि पूरा थिएटर भरा हुआ था और मेरी फिल्म देखी जा रही थी। इस फिल्म के बारे में बताने के लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा। मुझे इस फिल्म के लिए तकरीबन एक साल पहले अनुराग कश्यप का फोन आया था और उन्होंने कहा कि ग्रीस की एक फिल्म है, करना चाहोगी क्या? मैंने किरदार का पता किया और हां कर दिया। फिर फिल्म के निर्देशक किरियॉकस तोफारिद्स से मेरी दो-तीन बार चैट हुई। उन्होंने मुझे मेरा किरदार विस्तार से बताया।'
नीतू फिल्म के बारे में बताती हैं, 'इस फिल्म में मेरा किरदार एक भारतीय देवी का है जिसे प्रेम की देवी कहा जा सकता है। इसे काम देवी भी कहा जा सकता है। मुझे अपने आप में यह किरदार काफी चैलेंजिंग लगा, तो मैंने हां कर दिया। फिल्म की शूटिंग पिछले साल ही पूरी हो गई, लेकिन इसके पोस्ट प्रोडक्शन में वक्त लग गया। फिल्म ग्रीस की सामाजिक व्यवस्था की भी पड़ताल करती है। हालांकि, अभी तक इसकी इंडिया में रिलीज की योजना के बारे में मुझे कुछ पता नहीं चल पाया है, लेकिन मैं उम्मीद करती हूं कि जल्द ही कुछ अच्छा सुनने को मिलेगा।'
यह तो बात हुई नीतू की क्रॉसओवर फिल्म की, लेकिन बात अगर फिल्मों से हटकर नाटक की जाए, तो वे और भी उत्साहित हो जाती हैं। इन दिनों उनका नाटक 'उमराव जान' काफी चर्चा में है। वे कहती हैं, 'यह नाटक आज के दौर का है। कहानी का पीरियड और आत्मा वही है, लेकिन व्याख्याएं आज की महिला की हैं। आज भी एक महिला सबसे पहले क्या चाहती है? सुरक्षा, आजादी और सेल्फ रेस्पेक्ट..। हम तमाम वादों के बावजूद उन्हें यह सब देने में विफल हैं। अभी हाल-फिलहाल के कुछ मामले देख लीजिए। दिल्ली में जर्नलिस्ट का केस हो या फिर बिहार में ट्रेन के अंदर नब्बे बच्चियों के साथ एक साथ मोलेस्टेशन की बात। हम एक समाज के तौर पर विफल हो रहे हैं। यह सब कुछ इसी आधुनिक समाज में हो रहा है और इसके लिए हम जिम्मेदार हैं। हम सब में दोषी कौन है, किसी को पता नहीं है। महिलाओं की हालत क्या सुधरी है? उमराव जान को हम बड़े पैमाने पर ले जाने वाले हैं। निदा फाजली और निरंजन अयंगर ने मिलकर कमाल का नाटक लिखा है। मुंबई में इसका मंचन करने के बाद हम इसे भोपाल के भारत भवन लेकर जाएंगे। अब देखते हैं कि देश के अन्य हिस्सों में दर्शकों का क्या रेस्पॉन्स मिलता है?'
फिर फिल्मों को लेकर आपकी क्या योजना होगी? नाटकों की तरफ झुकाव कहीं इस बात का संकेत तो नहीं कि फिल्मों में दिलचस्पी कम हो रही है? वैसे भी अपने करियर में नीतू ने काफी कम फिल्में ही की हैं। नीतू इस बात का जवाब देती हैं, 'फिल्में मेरा पहला प्यार हैं। यह प्यार ताउम्र बरकरार रहेगा। बीच में मैंने साउथ की भी एक फिल्म पिछले साल की थी, लेकिन अब साउथ की और फिल्में करने का इरादा नहीं है, क्योंकि वह मेरी भाषा नहीं है। मैं यूपी-बिहार की लड़की हूं। हिंदी में ही काम करना चाहूंगी। अभी हिंदी की दो फिल्में पूरी हो गई हैं, लेकिन उनकी रिलीज डेट की घोषणा से पहले कुछ बताना ठीक नहीं होगा।'

और भोजपुरी? भोजपुरी की भी एक फिल्म 'देसवा' की निर्माता रह चुकीं नीतू के मन में भोजपुरी के दर्शकों को लेकर अगाध गुस्सा है? वे कहती हैं, 'दर्शकों को भोजपुरी बोलते हुए शर्म आती है, तो वे सिनेमाघरों में सिनेमा देखने क्या खाक जाएंगे? उन्हें अंग्रेजी का कुछ भी परोस दिया जाए, तो चलेगा, लेकिन अपनी भाषा में उन्हें कुछ भी नहीं चाहिए। मैंने अपनी जेब से पैसे लगाकर वह फिल्म बनाई थी। पिछले साल गोवा में इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में इंडियन पैनोरमा में प्रदर्शित वह पहली भोजपुरी फिल्म थी, लेकिन उसको बिहार में रिलीज तक होने नहीं दिया गया। हमने फिल्म तो अपने लोगों के लिए ही बनाई थी न अब मैंने ठान लिया है कि किसी भी भोजपुरी फिल्म का हिस्सा कभी नहीं बनूंगी। भोजपुरी सिनेमा का मुझे तो कोई भविष्य नहीं दिखता।'

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