शुक्रवार, दिसंबर 06, 2013

6 दिसंबर को क्या हुआ, कैसे हुआ

नई दिल्ली। 17 साल पहले अयोध्या में बाबरी की साजिश को अंजाम दिया गया। 6 दिसंबर, 1992 का दिन इतिहास का काला दिन बन गया।
5 दिसंबर, 1992
बड़े से पत्थर को बांधकर पहाड़ से नीचे गिराया गया। दरअसल ये रिहर्सल थी बाबरी मस्जिद को गिराने की। इसी दिन अयोध्या में लाखों कारसेवक एक और नारा बार-बार लगा रहे थे। मिट्टी नहीं सरकाएंगे, ढांचा तोड़ कर जाएंगे। ये तैयारी एक दिन पहले की थी। भगवा ब्रिगेड ने अगले दिन 12 बजे का वक्त तय किया था कारसेवा शुरू करने का। एक अजीब का जोश सबसे चेहरे पर साफ देखा जा सकता था।
6 दिसंबर, सुबह 11 बजे
सुबह 11 बजे के करीब कारसेवकों के एक बड़े जत्थे ने सुरक्षा घेरा तोड़ने की कोशिश की लेकिन उन्हें वापस धकेल दिया गया। इसी वक्त वहां नजर आए वीएचपी नेता अशोक सिंघल, कारसेवकों से घिरे हुए और उन्हें कुछ समझाते हुए। थोड़ी ही देर में उनके साथ बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी भी जुड़ गए। तुरंत ही इस भीड़ में लाल कृष्ण आडवाणी भी नजर आए। सभी सुरक्षा घेरे के भीतर मौजूद थे और लगातार बाबरी मस्जिद की तरफ बढ़ रहे थे। तभी पहली बार मस्जिद का बाहरी दरवाजा तोड़ने की कोशिश हुई लेकिन पुलिस ने उसे नाकाम कर दिया। तस्वीरें गवाह हैं कि इस दौरान पुलिस अधिकारी दूर खड़े होकर तमाशा देख रहे थे।
6 दिसंबर, सुबह साढ़े 11 बजे
मस्जिद अब भी सुरक्षित खड़ी थी। तभी वहां पीली पट्टी बांधे कारसेवकों का आत्मघाती दस्ता आ पहुंचा। उसने पहले से मौजूद कारसेवकों को कुछ समझाने की कोशिश की। जैसे वो किसी बड़ी घटना के लिए सबको तैयार कर रहे थे। कुछ ही देर में बाबरी मस्जिद की सुरक्षा में लगी पुलिस की इकलौती टुकड़ी वहां से बाहर निकलती नजर आई। न कोई विरोध, न मस्जिद की सुरक्षा की परवाह। पुलिस की इस टुकड़ी को दूर मचान पर बैठे पुलिस अधिकारी सिर्फ देखते रहे, कुछ किया नहीं। मस्जिद से पुलिस के हटने के तुरंत बाद मेन गेट पर दूसरा और बड़ा धावा बोला गया। जो कुछ पुलिसवाले वहां बचे रह गए थे वो भी पीठ दिखाकर भाग खड़े हुए।
6 दिसंबर, दोपहर के 12 बजे

दोपहर 12 बजे एक शंखनाद पूरे इलाके में गूंज उठा। कारसेवकों के नारों की आवाज पूरे इलाके में गूंजती जा रही थी। कारसेवकों का एक बड़ा जत्था मस्जिद की दीवार पर चढ़ने लगा। बाड़े में लगे गेट का ताला भी तोड़ दिया गया। कुछ ही देर में मस्जिद कारसेवकों के कब्जे में थी। इस वक्त की एक और तस्वीर गौर करने लायक है। तत्कालीन एसएसपी डीबी राय पुलिसवालों को मुकाबला करने के लिए कह रहे थे लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी। उस वक्त भी ये सवाल उठा था कि क्या ये पुलिस का विद्रोह था या फिर कैमरे के सामने किया गया सोचा-समझा ड्रामा। इस वक्त तक पुलिसवाले पूरी तरह हथियार डाल चुके थे। कुदाल लिए हुए कारसेवक तब तक मस्जिद गिराने का काम शुरू कर चुके थे। एक दिन पहले की गई रिहर्सल काम आई और कुछ ही घंटों में बाबरी मस्जिद को पूरी तरह ढहा दिया गया।

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