मंगलवार, सितंबर 10, 2013

मुजफ्फरनगर: पुलिसिया पक्षपात ने बिगाड़ी बात


लखनऊ । मुजफ्फरनगर में युवती से छेड़खानी की घटना के बाद पुलिस के पक्षपातपूर्ण रवैये से बात बिगड़ती चली गई। दंगा भड़क जाने के बाद अब चाहे जितनी सख्ती बरती जाए, लेकिन कहा जा रहा है कि वहां अफसरों ने हालात बिगड़ने का खुद मौका दिया। गृह सचिव कमल सक्सेना और आइजी एसटीएफ आशीष गुप्ता कहते हैं कि महापंचायत स्थल से जुड़े संवेदनशील मार्गो पर पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था थी, लेकिन यह अनुमान नहीं था कि स्थिति इतनी खराब हो जाएगी। पखवारे भर पहले से ही मुजफ्फरनगर समेत इर्द-गिर्द के जिलों में सुलग रही सांप्रदायिक तनाव की चिंगारी को बुझाने की योजनाबद्ध कोशिश नहीं की गई।

लापरवाही का नतीजा रहा कि मुजफ्फरनगर के नंगला-मंदौड़ की महापंचायत में एक लाख की भीड़ जुटी। फिर जो हुआ उससे निपटने को सरकार को सेना तक बुलानी पड़ी। ऐसा नहीं कि यह सब अचानक हुआ हो। उससे पहले निषेधा का उल्लंघन करके जुमे की नमाज के बाद एकत्रित हुजूम ने सभा की थी और उसमें नेताओं ने भाषण दिए थे। इसके जवाब में एक दिन और भीड़ उमड़ी और चेतावनी देकर चली गई लेकिन उससे कोई सबक नहीं लिया गया।

सरकार ने अब माना है कि खापों की महापंचायत की अनुमति नहीं दी गई थी, तो फिर सवाल भी लाजिमी है कि अनुमति न देने के बावजूद आ रही भीड़ को रोकने के बजाय आखिर वह लोग हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठे रहे? अफसर अब जो भाषा बोलें, लेकिन इतना जरूर है कि 27 अगस्त को मुजफ्फरनगर के कवाल में तिहरे हत्याकांड के बाद से हालात का सही आकलन नहीं किया जा सका। अगर सही आकलन हुआ भी तो अफसरों ने सरकार को सही स्थिति से अवगत नहीं कराया।

मुजफ्फरनगर में पांच सितंबर को आयोजित बंद में लोगों ने स्वत: स्फूर्त दुकानें बंद की, लेकिन अफसरों ने बताया कि बंदी केवल 40 प्रतिशत रही है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को जब खुफिया तंत्र ने आगाह किया तो उनके दिशा निर्देश पर पुलिस महानिदेशक देवराज नागर समेत कई अधिकारी मुजफ्फरनगर पहुंचे। डीजीपी ने बवाल में जबरन फंसाये गये बेगुनाहों को छोड़ने और एसटीएफ से निष्पक्ष जांच का भरोसा दिया, लेकिन तब तक माहौल में काफी तनाव भर गया था। फिर भी सख्ती करने के बजाय लोगों को सड़कों पर उतरने की छूट दी गयी और यही छूट बवाल-ए-जान बन गई।

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