बुधवार, नवंबर 23, 2011

मुझसे मिलने वो आती तो होगी


अब भी मुझसे मिलने वो आती तो होगा

ओह तेरी हर अदा निराली

मैं ही शायद कहीं और बस गया हूं ,
मगर मैना अब भी चहचहाती तो होगी

सीएफ़एल में सुबह और नियोन में शाम ,होती रहे बेशक ,
मगर ओस की पहली बूंद को ,अब भी पहली किरण नहलाती तो होगी

बेशक मैं ही मशरूफ़ हुआ करता हूं अब अक्सर ,
मैं देख नहीं पाता, मगर जुल्फ़ें वो अब भी सुलझाती तो होगी

तुम्हारे पर्दों का वजन ही कुछ ज्यादा बढ गया है ,
वर्ना सब जानते हैं , हवा अब भी वहां सरसराती तो होगी

हमारी किस्मत,देखने को मिट्टी भी सिर्फ़ गमलों में बची है ,
गावं की मिट्टी पर सरसों ,अब भी धरती को लहकाती तो होगी ...

बेशक छलका तो जाम , किसिम किसिम के ,
मगर महुआ अब भी लौंडों को बहकाती तो होगी

जहां मैं रहता हूं , वहां धुंआं ही धूल है और कोहरा भी,
गांव में, भागते बछियों की टोली , अब भी खालिस धूल उडाती तो होगी

कौन देता है अब मेला घूमने की छुट्टी , इसलिए जाना नहीं होता ,
दुर्गाअष्टमी के मेले में ,.अब भी मुझसे मिलने वो आती तो होगी

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