अब भी मुझसे मिलने वो आती तो होगा
ओह तेरी हर अदा निराली
मैं ही शायद कहीं और बस गया हूं ,
मगर मैना अब भी चहचहाती तो होगी
सीएफ़एल में सुबह और नियोन में शाम ,होती रहे बेशक ,
मगर ओस की पहली बूंद को ,अब भी पहली किरण नहलाती तो होगी
बेशक मैं ही मशरूफ़ हुआ करता हूं अब अक्सर ,
मैं देख नहीं पाता, मगर जुल्फ़ें वो अब भी सुलझाती तो होगी
तुम्हारे पर्दों का वजन ही कुछ ज्यादा बढ गया है ,
वर्ना सब जानते हैं , हवा अब भी वहां सरसराती तो होगी
हमारी किस्मत,देखने को मिट्टी भी सिर्फ़ गमलों में बची है ,
गावं की मिट्टी पर सरसों ,अब भी धरती को लहकाती तो होगी ...
बेशक छलका तो जाम , किसिम किसिम के ,
मगर महुआ अब भी लौंडों को बहकाती तो होगी
जहां मैं रहता हूं , वहां धुंआं ही धूल है और कोहरा भी,
गांव में, भागते बछियों की टोली , अब भी खालिस धूल उडाती तो होगी
कौन देता है अब मेला घूमने की छुट्टी , इसलिए जाना नहीं होता ,
दुर्गाअष्टमी के मेले में ,.अब भी मुझसे मिलने वो आती तो होगी
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