यमपुरी बहुत विशाल है। यमपुरी में चार विशाल दरवाजे हैं। यमपुरी के चारों दरवाजे चार दिशाओं में खुलते हैं। यमपुरी का सबसे सुंदर दरवाजा पूर्व दिशा का माना जाता है। पश्चिमी द्वार भी बहुत सुंदर और रत्नों से जड़ित हैं। पश्चिमी दरवाजे से शुरवीर और तपस्वी पुरूष यमपुरी में प्रवेश करते हैं। उत्तर द्वार भी रत्न से अलंकृत है।
इस दरवाजे से वे लोग यमपुरी में प्रवेश करते हैं जिन्होंने माता-पिता की सेवा व दान धर्म के साथ ही अन्य सतकर्म किए। यमपुरी का दक्षिण द्वार बहुत भयानक है। वह संपूर्ण जीवों के मन में भय उपजाने वाला है। वहंा निरंतर हाहाकार मचा रहता है। वहां हमेशा अंधेरा रहता है। उसके दरवाजे पर तीखें सींग, कांटे, बिच्छू, सांप वज्रमुख, कीट, भेड़िए, व्याघ्र, रीछ, सिंह, गीदड़, कुत्ते, बिलाव, गिद्ध उपस्थित रहते हैं। उपके मुंह से आग की लपटे निकलती है। जो सदा अपकार करनेवाला पापात्मा हैं, उन्हीं का उस मार्ग पुरी में प्रवेश करने वाले पापात्मा है।
उन्हीं का उस मार्ग से पूरी में प्रवेश होता है। जो ब्राह्मण, गाय, बालक ,वृद्ध , रोगी, शरणागत, विश्वासी, स्त्री, मित्र, और मनुष्य की हत्या करते या करवाते हैं। अगम्या स्त्री से समागम करते हैं। सदा झूठ बोलते हैं। ग्राम नगर और राष्ट्र को महान दुख देते हैं। कन्या बेचते हैं। अभक्ष्य भक्षण करते हैं। पुत्री और पुत्रवधु के साथ समागम करते हैं। माता-पिता को कटू वचन कहने वाला। ये सभी लोग दक्षिण द्वार से यमपुरी में प्रवेश करते हैं।
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