विदेशी महिलाओं ने जिस्म फरोशी के धंधा का देश भर में जाल बिछा रखा है। देश में कोई सख्त कानून न होने के कारण यह धंधा काफी फल फूल रहा है। जिससे भारतीय समाज भी प्रभावित हो रहा है। शासन और प्रशासन इसे रोकने में पूरी सफल नहीं हो पा रहा है।
अब तो बाकायदा इस धंधे को विदेशों की तरह भारत में भी सामाजिक मान्यता दिलाये जाने के लिए कानून बनाने पर विचार शुरू हो गया है। अगर ऐसा होता है तो क्या भारतीय परंपराएं धार्मिक मान्यताएं और सामाजिक व्यवस्थाओं को कुचलने का काम नहीं होगा? क्या पश्चिम सभ्यता हम पर हावी हो जायेगी? भारत सदियों में धार्मिक परम्पराओं और सामाजिक ढांचे में जीता आया है।
इसलाम धर्म हो, सनातन और या फिर सिख धर्म हो । कोई धर्म वेश्यावृत्ति और समलैंगिकता को मान्यता नहीं देता।
कुछ समय पूïर्व बहस छिड़ी थी कि समलैंगिकता को मान्यता मिले या न मिले। लेकिन इसे बाद में न्यायालय से मान्यता मिल गई। जिस का लगभग सभी धर्म को गुरुओं ने
विरोध भी किया। अब वेश्यावृत्ति को लेकर बहस छिड़ी हुई है। सुप्रीमकोर्ट ने भी सभी प्रदेशों से पूछा है कि क्यों न वेश्यावृत्ति को
सामाजिक मान्यता दिलाए जाने के लिए कानून बनाया जाये।
देश के बड़े शहरों दिल्ली मुंबई कोलकाता तो दूर छोड़े छोड़े शहरों में भी आधुनिकता के नाम पर अश्लीलता परोसी जा रही है। इसे रोकने में सफलता नहीं मिल पा रही है क्यों कोïई सïख्त कानून नहीं है।
देश में नेपाल, उकेजिस्तान, आस्टे्रलिया और देशों ने महिलाएं ट्यूरिस्ट वीजा लेकर भारत आती हैं और बाद में यह वेश्यावृत्ति के धंधे में लग जाती हैं। आए दिन ऐसे रैकेट को भंडा भी फूटता है लेकिन इस के बाद भी वेश्यावृत्ति
पर अंकुश नहीं लग पा रहा है।
पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि यह विदेशी महिलाएं एक रात के 20,000 से 35,000 रुपये वसूलती हैं।
अपराध शाखा ने 18 जुलाई को साउथ एक्स पार्ट-2 से विदेशी महिलाओं के एक रैकेट का पर्दाफाश करते हुए सात महिलाओं को गिरफ्तार किया था। उनमें एक महिला कजाकिस्तान, तीन उजबेकिस्तान तथा दो नेपाल की रहने वाली थीं।
कजाकिस्तान की रहने वाली महिला उनकी मुख्य सरगना थी जो अभिलाष नाम व्यक्ति के साथ मिलकर यह रैकेट चलाती थी।
पुलिस ने 12 जुलाई को दक्षिणी दिल्ली के छतरपुर से भी ऐसे ही एक रैकेट का पर्दाफाश कर पांच महिलाओं तथा उनके दो चचेरे भाइयों को गिरफ्तार किया था। उनसे ऑडी कार भी बरामद की गई थी।
अगर वेश्यावृत्ति को मान्यता दिये जाने के लिए कानून बनता है तो इससे धार्मिक मान्यताओं पर तो प्रभाव पड़ेगा ही साथ ही सामाजिक ढांचा भी अछूता नहीं रह पाएगा।
कानून तो बने लेकिन ही उसमें सामाजिक ढांचे और भारतीय सभ्यता प्रभावित न होने पाये।
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