शुक्रवार, अप्रैल 15, 2011

भागती जिंदगी

तेज भागती जिंदगी के बीच जहां एकल परिवार बढ़ते जा रहे हैं, वहीं आपसी रिश्तों में भी दूरियां और एकाकीपन बढ़ता जा रहा है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के नोएडा शहर में दो बहनों का खुद को महीनों घर में बंद रखना भी समाज के इस बदलते स्वरूप का स्याह पक्ष ही सामने लाता है। ऐसी दो घटनाएं दिल्ली में पहले भी सामने आ चुकी हैं। एक मामला साकेत इलाके में सामने आया था, जहां एक महिला ने खुद को अपनी मां के शव के साथ चार महीने तक घर में बंद कर रखा था। वहीं, जंगपुरा में 28 वर्षीय युवती को मानसिक रोगी होने के कारण उसके घर वालों ने 18 महीने तक एक छोटे कमरे में बंद कर रखा था। नोएडा में सामने आए ताजा मामले में पिता की सड़क हादसे में मौत और उसके एक वर्ष बाद मां का निधन होने व भाई के घर छोड़कर चले जाने से अकेली हो चुकी दो बहनों ने खुद को घर में बंद कर लिया और खाना-पीना तक त्याग दिया। भाई की तरह ही अन्य रिश्तेदारों व पड़ोसियों ने भी उनकी ओर जरा सा भी ध्यान नहीं दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि वे महीनों अपने घर में अपनी ही कैद में रहीं और शारीरिक रूप से इतनी कमजोर हो गईं कि मौत के करीब पहुंच गईं। एक गैर-सरकारी संगठन ने पुलिस की मदद से उन्हें अस्पताल पहुंचाया, जहां उनमें से एक की मौत भी हो गई। यह घटना जहां रिश्तों के बीच बढ़ती दूरियां बयां करती है, वहीं दिल्ली-एनसीआर में रह रहे लोगों की संवेदनहीनता का भी उदाहरण प्रस्तुत करती है। यह सही है कि दिल्ली व एनसीआर के शहरों में जिंदगी बहुत तेजी से भाग रही है और लोगों को आपसी रिश्ते निभाने के लिए भी समय नहीं मिल पा रहा है, लेकिन ऐसे में क्या रिश्तेदारों को त्याग दिया जाना चाहिए। ऐसी घटनाओं के लिए रिश्तेदार यकीनन बहुत हद तक जिम्मेदार हैं, लेकिन ऐसी स्थिति में जब रिश्तेदार साथ नहीं देते, पड़ोसियों का दायित्व कहीं अधिक बढ़ जाता है। पड़ोसियों को चाहिए कि वे नजर रखें कि उनके पड़ोस में क्या घट रहा है और आवश्यकता पड़ने पर मदद की भावना के साथ आगे आएं। लोगों को रिश्तों का महत्व समझना चाहिए और उसे पर्याप्त समय देना चाहिए। उन्हें समझना चाहिए कि तेजी से भागती दुनिया में सबकुछ बदल जाता है लेकिन रिश्ते नहीं बदलते। रिश्ते अमूल्य हैं, उन्हें पूरी संवेदनशीलता के साथ निभाया जाना चाहिए।

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